यदि ये दो न होते तो:- डॉक्टर विवेकानंद मिश्रा
आज बिहार विशेषकर गया क्षेत्र में कांग्रेस की ज्योति इस प्रकार प्रकाशित न रहती। विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में प्रतिष्ठित और कांग्रेस के वरिष्ठ चिंतक डॉ. विवेकानंद मिश्र नें पत्रकार के पूछे गए प्रश्न के उत्तर में कांग्रेस की वर्तमान स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि भारतवर्ष में और विशेषकर बिहार में जो विपन्न अवस्था कांग्रेस पर छायी है, वह किसी भी निष्ठावान कार्यकर्ता के लिए घोर चिंता का विषय है।
बिहार के प्रख्यात, ईमानदार छवि वाले कद्दावर नेता तथा पूर्व मंत्री अवधेश कुमार सिंह ने वजीरगंज विधानसभा क्षेत्र में अथक परिश्रम से जो कांग्रेस की आधारशिला स्थापित की, और नगर में मोहन श्रीवास्तव ने जिस सक्रियता, दृढ़ता से संगठन को मजबूत किया, यदि यह दोनों अपने अपने क्षेत्र न होते, तो न कांग्रेस को, न गठबंधन को वह समर्थन प्राप्त होता जो वर्तमान परिस्थिति में मिला है।
डॉ. मिश्र ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व द्वारा जो मार्ग अपनाया जा रहा है, वह जो शेर को घास, बकरी को मांस खिलाने का और विषधर सांप को को दूध पिलाने की करवाई अविवेकी और आत्मघाती प्रतीत होता है। स्वयंभू नेताओं द्वारा न अपनी त्रुटियों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति है, न ही सुधार की इच्छा, और इसी का स्वाभाविक दुष्परिणाम संगठन पर स्पष्ट दिखाई देता है। कांग्रेसजनों में यह सामान्य धारणा बन चुकी है कि निकट भविष्य में भी यही दुर्गति बनी रहेगी, जो किसी भी प्रकार से शुभ संकेत नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि संगठन की समाधि पर केवल सत्ता की अभिलाषा का मनोभाव स्थापित कर दिया गया है।
महागठबंधन के नाम पर विचारहीन समझौते, अपनी गौरवपूर्ण वैचारिक परंपरा को वामपंथी प्रवृत्तियों और राजद जैसी दलगत नीतियों के हेतु त्याग देना, यह सब कांग्रेस को जिस मोड़ पर ला खड़ा किया है, वह संतापजनक है। कांग्रेस के परम निष्ठावान नेताओं—डॉ. जगन्नाथ मिश्र, प्रोफेसर रामजतन बाबू और डॉ. मदन मोहन झा—जैसे लोकप्रिय व्यक्तित्वों को उपेक्षा के गर्त में डाल देना भी विचारणीय है।
डॉ. मिश्र ने कहा कि जो लोग अपने श्रम, त्याग, और अटल निष्ठा से संगठन को आज भी संभाले हुए हैं, वे ही वास्तव में अभिनंदन के अधिकारी हैं।अवधेश कुमार सिंह और मोहन श्रीवास्तव शीर्ष नेताओं द्वारा धन्यवाद के पात्र हैं।
उधर डॉक्टर विवेकानंद मिश्र के दिए गए बयानों के समर्थन में भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा एवं कौटिल्य मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आचार्य सचिदानंद मिश्र (नैकी) का विचार-
गयाक्षेत्र व आसपास में अपने ज्ञान, सादगी और आयुर्वैदिक दक्षता के कारण आदर-सम्मान पाने वाले आचार्य सचिदानंद मिश्र ने कांग्रेस की वर्तमान दशा पर गंभीर पीड़ा प्रकट की। उन्होंने कहा कि जब किसी संगठन में निष्ठा के स्थान पर चापलूसी, और सिद्धांतों के स्थान पर अवसरवाद का बोलबाला हो जाए, तब वह संगठन धीरे-धीरे क्षीण होता ही है।
आचार्य ने यह भी कहा कि संगठन को पुनः स्थापित करने का एकमात्र मार्ग सत्य, त्याग और तप ही है। जब तक नेतृत्व सत्य के आधार पर दृढ़ नहीं होगा, तब तक संगठन पुनः उत्थान नहीं देख पाएगा।
उन्होंने स्पष्ट कहा कि क्षेत्र के कार्यकर्ताओं ने जो त्याग किया है, उसे स्वीकारना और सम्मान देना ही कांग्रेस के पुनर्स्थापन का प्रथम पग है।
पंडित राधामोहन मिश्र का विचार-
वृहद सामाजिक अनुभव और गहन राजनीतिक समझ रखने वाले पंडित राधामोहन मिश्र ने इस परिस्थिति को धर्म-अधर्म के संघर्ष से तुलना करते हुए कहा कि जब नीति-विरुद्ध गठबंधन और विचारहीन राजनीति प्रमुख हो जाती है, तब परिणाम सदैव विनाशकारी ही होते हैं।
पंडित जी ने कहा कि कांग्रेस की आत्मा सदैव राष्ट्रहित और लोकतांत्रिक मर्यादा पर आधारित रही है, परंतु वर्तमान नेतृत्व उस मूल आत्मा से विचलित होता दिख रहा है। उन्होंने कठोर स्वर में कहा कि यदि कांग्रेस अपनी जड़ों से पुनः न जुड़ी, तो भविष्य और भी भयावह हो सकता है।
पंडित मिश्र का मानना है कि संगठन को उन लोगों के हाथ में सौंपना चाहिए जो सिद्धांत, सेवा और संगठन को प्रथम स्थान देते हैं। प्रसिद्ध समाज सेवी एवं बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रतिनिधि रहे मृदुला मिश्रा नें वर्तमान परिस्थिति में जब संगठन निरंतर भ्रमित निर्णयों और असंगत गठबंधनों के भार से दब रहा है, तब भी प्रदेश में कुछ तेजस्वी, कर्मयोगी और सत्यनिष्ठ कार्यकर्ताओं ने आशा की लौ जलाए रखी है। श्रीमती मिश्रा ने अपनी आस्था कांग्रेस में व्यक्त करते हुए कहीं हैं की कांग्रेस के पुनरुत्थान का मार्ग कठिन अवश्य है, पर असंभव नहीं—यदि नेतृत्व विवेक, सिद्धांत और संगठन-निष्ठा को पुनः अपनाने का साहस कर सके।
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