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मुस्काराना सीखो

मुस्काराना सीखो

जीवन की मुश्किलों से लड़ना सीखो।
हँसते हँसते यारो जिंदगी जीना सीखो।
लाख कांटो से क्यों न गिरे हो तुम।
पर मुस्कराना तो तुम गुलाब से सीखो।।

राहगीर राह को अपनी मर्जी से चुनते है।
ताकि मंजिल तक आराम से पहुँच सके।
भूलकर भी राहगीर राह बदलता नहीं है।
क्योंकि उसे अपनी मंजिल का पता है।।

जिंदगी के सफर में लाखों लोग मिलते है।
जो की अक्सर सभी अजनबी ही होते है।
कुछ अंजान होकर अपने लगने लगते।
तो कुछ अपने होकर अंजान बन जाते।।

सेवा और सत्कार तुम फूलों से सीखो।
जो हर रोज सभी के काम आते है।
कही स्वागत और पूजा में चढ़ाये जाते।
तो कही अर्थी समाधि पर सजाये जाते।।

जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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