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संविधान और संविधान दिवस

संविधान और संविधान दिवस

✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"

अमर दीप-सा जलता रहे, लोकतंत्र का मान,
भारत के संविधान में बसा, जनता का अरमान।
समानता की उजली राहें, अधिकारों का साथ,
न्याय-सुरक्षा-स्वतंत्रता का, रचा हुआ पाठ।


सन् बावन में बदल दिया भारत का इतिहास,
हर पन्ने में बसता उनका, संघर्षों का उजास।
प्रजा की इस निधि को, मिलकर दें हम मान,
संविधान दिवस पर बोलें— भारत हो महान!


कर्तव्य हमारी धड़कन हैं, अधिकार हमारे गीत,
एकता की भाषा बोले हम,भाईचारा बने संगीत।
भेदभाव सब दूर करें, बढ़े समरसता की डोर,
नए युग का भारत! हम सब एक, मजबूत और गौर।


चलो शपथ दोहराएँ फिर से, आगे बढ़ने की,
संविधान के आदर्शों पर, जीवन गढ़ने की।
स्वतंत्र, गणतंत्री भारत का, यही सदा ऐलान,
हम जनता हैं जागरूक, संविधान हमारी शान।


संविधान में हुआ सनातन संस्कृति का सत्कार,
पर इसके उलट हुआ तुष्टिकरण का व्यापार।
सत्ता की राहों में क्यों झुकते सत्य के आधार,
क्यों तुष्टिकरण की राजनीति बना राष्ट्र का भार।


संविधान के नाम पर विपक्ष फैलता भ्रम का संसार,
न्याय की चौखट तक पहुँच ठोकर खाया कई बार।
जनमन पूछे,कब जागेगा खास धर्म का अधिकार,
एक खास धर्म की विशिष्टता क्यों करे स्वीकार।


जिस पर सचित्र हैं राम और सजा राम का दरवार,
मुस्लिम तुष्टिकरण में मंचों से क्यों खींच रहा तलवार।
आज संविधान के नाम पर, लगा है झूठ का अंबार,
इस पर क्यों चुप है न्यायालय और मौन है सरकार।


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