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पहचानों..

पहचानों..

भाई-बहिन का हक मारकर
दान-वीर खुद बन गये।
खुदके मात-पिता को पर
बृध्दाश्रम में छोड़ दिया।।


खुद से भी जो खुदको छुपायें
वो औरो का कैसे हो सकता।
अपने पराये का भेद बताकर
वो क्या किसी का हो सकता।
जिनकी खुदकी नीयत खोटी
उनसे क्या कोई उम्मीद करें।
इसलिए खुदके माँ बाप को
बृध्दाश्रम में छोड़ दिये।।
भाई-बहिन का हक मारकर
दान वीर खुद बन गये।


उत्सव और जलसो में ये
सब से आगे होते है।
इनकी कहने और करने में
अंतर बहुत होता है।
मात पिता की सेवा का
संदेश मंच देते है।
पर खुदके मात पिता ये
बृध्दाश्रम में रखते है।।
भाई-बहिन का हक मारकर
दान-वीर खुद बन गये।।


सबको ये मूर्ख समझते
जबकि खुद ही ये मूर्ख है।
इनकी करने के फल देखो
घर वाले जो भोग रहे।
फिर भी खुदको ऐसे लोग
दान वीर कहलवा रहे।
खुदकी असली सूरत को
पर जनता से छुपा रहे।।
भाई-बहिन का हक मारकर
दान-वीर खुद बन गये।
खुदके मात-पिता को पर
बृध्दाश्रम में छोड़ दिया।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई


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