“जीवन-दिशा का दीप”
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
मन में जब निर्मलता छाए,
जग का हर संदेह मिटाए,
अंतर-दीपक ज्योत जलाकर,
सत्य पथिक को राह दिखाए।
चित्त निर्मल हो जाए जिस क्षण,
संकल्पों में दिव्यता झलके,
कर्म सहज बहने लगते हैं,
जैसे सरिता शीतल छलके।
कोलाहल की भीड़ जगत की,
छू न पाए जब ध्यान गहर को,
शांत केन्द्र मिलता अंतस में,
साधक पाता अपना घर को।
न निर्णय थरथर करवाते,
न हालातों से हार मिले,
दृष्टि अंतर्दीप्त जब होती,
मार्ग स्वयं फिर पार मिले।
यही मन की स्पष्टता हमको,
जीवन का मर्म बता जाती,
दीपक बनकर हर अँधियारे में,
राह उजाली कर जाती।
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