विरह का क्रंदन,प्रेम का एक मधुर नाद
दृष्टिगोचर प्रियतम छवि,स्व अस्तित्व विस्मृति ओर ।
कण कण अंतर प्रिय दर्शन,
हर कदम उन्मुख मिलन छोर ।
अर्थहीन जग चमक दमक,
दूरी व्यर्थ प्रपंच वाद विवाद ।
विरह क्रंदन,प्रेम का एक मधुर नाद ।।
प्रेम सर्वोच्च अवस्था भाव,
वेदना पर चाहना अनंत ।
भूल कर जगत रीति नीति,
जीवन शैली चर्या सम संत ।
आलोचना बुराई निष्प्रभावी,
चितवन विचरण प्रियवर याद ।
विरह क्रंदन,प्रेम का एक मधुर नाद ।।
उर आरेखित अनुपम चित्र,
राधा कृष्ण स्वप्निल बिंदु ।
मीरा सदृश आराधना भक्ति ,
प्रणय प्रवाह अंतर सिंधु ।
वियोग मात्र तन संबंधित,
अंतर्मन निर्झर नेह प्रपात ।
विरह क्रंदन,प्रेम का एक मधुर नाद ।।
शब्द स्वर धारण मौन भाषा,
हिय जिय प्रेमास्पद पुकार ।
वाणी शून्य पर्याय प्रिय,
सादगी झलक सोलह श्रृंगार ।
अष्ट प्रहर एक्य चिंतन मनन,
मानस शोभित प्रिय उन्माद ।
विरह क्रंदन,प्रेम का एक मधुर नाद ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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