सोलह श्रृंगार — नारी सौंदर्य के अलंकार
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"पाँवों में अलता, लालिमा बिखाए,
हर कदम से सौंदर्य का गीत गाए।
सज-धज कर चले, फूलों की छाया,
नारी रूप में प्रकृति की माया।
बालों में कंघा, झूलती लहरें,
गले में माल्य, खुशबू भरे गगन में।
कानों में कर्णफूल, चाँदनी झिलके,
सज-धज कर नारी, जग को मोहक लगे।
माथे पर नक्षत्र, सितारों की छाया,
कुंडल झूमे कानों में राग लहराया।
अंगुलि श्रृंगार, रिंगों की छटा,
कुची श्रृंगार नखों में रंगीला मजा।
कलाई में पुस्तक श्रृंगार झंकार भरे,
अक्षत श्रृंगार मंगल गीत बहरे।
कमर में पाटल श्रृंगार मोती चमकाए,
वक्ष श्रृंगार सुंदरता का आलोक फैलाए।
मुख श्रृंगार होंठों की मधुर मुस्कान,
नेत्र श्रृंगार काजल से दीपक समान।
व्रज श्रृंगार बिंदी और रंगोली की छाया,
चरण श्रृंगार पैरों में सजी सौंदर्य माया।
सोलह श्रृंगार नारी का अद्भुत रूप,
प्रकृति और प्रेम का अद्वितीय संपूर्ण रूप।
हर श्रृंगार में बसी शक्ति और कहानी,
सज-धजकर नारी, जग में सर्वोच्च निशानी।
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