हरि हीरो के हार दिहलन
हरि हीरो के हार दिहलन ,हीरा के खान से हींर के ।
हरि मति से मीत बनवले ,
जीतल उल्टे धार चीरके ।।
नदी के पानी मीठा होला ,
समुद्र में मिल होखे खारा ।
समुद्र के जल पी लीहीं त ,
दिन में गिनाए लागी तारा ।।
बिहार चुनाव इ हल्ला रहे ,
चुनाव हो गईल जब संपन्न ।
वोट के जब गिनती भईल ,
त विपक्ष के उखड़ल कंपन्न ।।
चुनाव गिनती खतम भईल ,
कहीं रात कहीं भोर हो गईल ।
चोर के जब अंहार ना मिलल ,
चोर नजरे इंसाॅं चोर हो गईल ।।
दिन में कहियो चान ना दिखी ,
दिख जाई त प्रकाश ना मिली ।
सौर प्रकाश जरूरी जीव लागी ,
दिन ना त सुमन कईसे खिली ।।
अब चुनाव के समय बा लमहर ,
नया मुद्दा खोजे अब जुट जाईं ।
या थाक गईल होखीं रउआ यदि ,
जाके कुंभकर्ण नीने सुत जाईं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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