महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह : दान, धर्म और शिक्षा का त्रिवेणी संगम — राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, पटना में विशेष आयोजन

पटना, 13 नवम्बर 2025।
राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, काज़ीपुर, पटना में आज मिथिला और भारतीय शिक्षा-जगत के महान दानवीर, शिक्षाप्रेमी एवं संस्कृति-सेवी महाराजाधिराज डॉ. कामेश्वर सिंह दरभंगा की जयंती श्रद्धा और गरिमा के साथ मनाई गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्रधानाचार्य प्रो. मनोज कुमार ने की तथा कार्यक्रम का संयोजन डॉ. ज्योत्सना ने किया। इस अवसर पर पूर्व कुलपति प्रो. उमेश शर्मा, डॉ. विवेकानंद पासवान, डॉ. शिवानंद शुक्ल, डॉ. अलका कुमारी एवं डॉ. शबाना शिरीन सहित अनेक प्राध्यापकगण एवं छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. राघव नाथ झा की गरिमामयी उपस्थिति रही, जिन्होंने पत्रकारिता एवं साहित्य के क्षेत्र में अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि महाराजाधिराज का जीवन राष्ट्र-निर्माण के आदर्शों से ओतप्रोत था। उनके कार्य हमें यह सिखाते हैं कि शिक्षा केवल ज्ञान का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने का आधार है।
वक्ताओं ने कहा कि महाराजाधिराज डॉ. कामेश्वर सिंह न केवल मिथिला के गौरव थे, बल्कि भारतीय शिक्षा-जगत के ऐसे अमर दानवीर थे, जिनके योगदान की गूंज आज भी काशी हिंदू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय और पटना विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में सुनाई देती है।
उन्होंने अपनी उदारता से न केवल संस्कृत और भारतीय परंपरा को समृद्ध किया, बल्कि सभी भाषाओं एवं विषयों के विकास में समान भावना से सहयोग दिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ विद्यार्थियों द्वारा वैदिक मंगलाचरण और महाविद्यालय गीत से हुआ। तत्पश्चात् महाराजाधिराज के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
छात्रों ने उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए शिक्षा, संस्कृति और समाज-सेवा के आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात करने का संकल्प लिया।
प्रधानाचार्य प्रो. मनोज कुमार ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि महाराजाधिराज का जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि “शिक्षा ही राष्ट्र के उत्थान का सबसे सशक्त माध्यम है।” उन्होंने कहा कि हमें उनके आदर्शों को आत्मसात कर समाज एवं राष्ट्र के कल्याण में योगदान देना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. ज्योत्सना ने प्रभावपूर्ण ढंग से किया तथा अंत में आभार-प्रदर्शन डॉ. विवेकानंद पासवान ने किया।
इस अवसर पर उपस्थित सभी शिक्षकगणों और विद्यार्थियों ने एक स्वर में यह भाव व्यक्त किया कि महाराजाधिराज जैसे शिक्षादाता और समाजसेवी का जीवन भारतीय संस्कृति के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेगा।
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