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मन माटी मथता शिल्पकार

मन माटी मथता शिल्पकार

रोम रोम जन संवेदनाएं,
सत्य रक्षित सतत प्रयास।
शब्द भाव चेतना ओतप्रोत,
अर्थ अंतर उमंग उल्लास ।
मानवता हित चिंतन मनन,
कलम संग स्वप्न साकार ।
मन माटी मथता शिल्पकार ।।

दुःख पीड़ा संकट साथी,
सुख समृद्धि वैभव सेतु ।
सर्व धर्म समभाव दृष्टि,
स्नेह प्रेम भाईचारा हेतु ।
प्रेरणा नारी सशक्तिकरण,
हृदय राष्ट्र धरा जय जयकार ।
मन माटी मथता शिल्पकार ।।

सूक्ष्म आकलन दैनिक चर्या,
हर आयु लिंग सरस ध्यान ।
आरेख जीवन अठखेलियां,
निज संस्कृति प्रतिष्ठा आह्वान ।
प्रकृति प्रति कर्तव्य बोध,
परिवेश स्वच्छ रम्य आकार ।
मन माटी मथता शिल्पकार ।।

जन स्वर मुखर अभिव्यक्ति,
भेद विभेद विरोध पुरजोर ।
शासन तंत्र पारदर्शी ज्योत,
अधिकार पूर्व कर्तव्य भोर ।
सदैव सशक्त प्रहरी नैतिकता,
अनैतिकता विरुद्ध प्रतिकार ।
मन माटी मथता शिल्पकार ।।

कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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