सभी बुजुर्गों को समर्पित
अपनी व्यथा को कथा में बदल डालो,
नाज करे दुनिया, कुछ ऐसा कर डालो।
यूँ ही लोग जीते हैं, जमाने में अक्सर,
जीने का मकसद, जमाने को बता डालो।
क्यूँ जीयें हम, बेबसी की चादर ओढकर,
अपने तजुर्बों से, नया आशियां बना डालो।
बहुत कुछ मिला है, समाज से हमको,
समय आ गया, बदले में कुछ लौटा डालो।
अ कीर्तिवर्धन
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