 कर्मयोगी गांधी और शास्त्री जी का जीवन ही मानवता का अमर संदेश : डॉ. विवेकानंद मिश्र
कर्मयोगी गांधी और शास्त्री जी का जीवन ही मानवता का अमर संदेश : डॉ. विवेकानंद मिश्र

गया (बिहार), 02 अक्टूबर।
आज का दिन भारतीय इतिहास और संस्कृति के लिए अद्वितीय महत्व रखता है। एक ओर यह दिन महात्मा गांधी, राष्ट्रपिता और सत्य-अहिंसा के प्रतीक, की जयंती का स्मरण कराता है, वहीं दूसरी ओर यह दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं सादगी तथा कर्मठता के आदर्श लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती के रूप में हमें त्याग और ईमानदारी का संदेश देता है। इसी के साथ विजयादशमी का पर्व भी इस तिथि पर धर्म और सत्य की विजय का अमर संदेश लेकर आता है।

इन्हीं तीनों प्रेरक अवसरों के पावन संगम पर गया स्थित डॉ. विवेकानंद पथ, गोल बगीचा में एक भव्य संगोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात शिक्षाविद् एवं समाजसेवी डॉ. विवेकानंद मिश्र ने की।
गांधी और शास्त्री – भारतीय आत्मा के अमर दीपक
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. मिश्र ने कहा –
“कर्मयोगी महात्मा गांधी और शास्त्री जी का जीवन ही मानवता का अमर संदेश है। ये दोनों ही भारतीय आत्मा के दीपक हैं, जिन्होंने हमें दिखाया कि सादगी, ईमानदारी, सत्य और अहिंसा केवल विचार नहीं बल्कि जीवन जीने का मार्ग हैं। यदि हम उनके आदर्शों को व्यवहार में लाएँ, तभी सच्चे अर्थों में राष्ट्रनिर्माण संभव होगा।”
विजयादशमी – धर्म और मर्यादा का शाश्वत संदेश
आचार्य सचिदानन्द मिश्र (नैकी) ने कहा –
“विजयादशमी केवल पर्व नहीं, बल्कि धर्म और मर्यादा का शाश्वत संदेश है। गांधी जी की अहिंसा और शास्त्री जी की सादगी हमें भारतीय संस्कृति की विराटता का दर्शन कराती हैं। इन्हें जीवन में धारण करना ही हमारी सच्ची साधना है।”
एकता और शांति का मार्ग
वरिष्ठ समाजसेवी राधामोहन मिश्र ने कहा –
“आज जब समाज विभाजनकारी प्रवृत्तियों से जूझ रहा है, ऐसे समय में गांधी–शास्त्री के आदर्श और श्रीराम की विजयकथा हमें स्थिरता और मार्गदर्शन प्रदान कर सकती है। यह दिवस शांति, एकता और धर्मनिष्ठा का संदेश देता है।”
युवाओं के लिए प्रेरणा का त्रिगुणित दीप
छात्र दिव्यांशु कुमार ने अपने विचार रखते हुए कहा –
“मेरे लिए यह दिन प्रेरणा का त्रिगुणित दीप है। गांधी जी का सत्य, शास्त्री जी की ईमानदारी और विजयादशमी की शिक्षा हमें बताती है कि विद्यार्थी जीवन केवल परीक्षा की तैयारी नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण की साधना है। यही आदर्श अपनाना सच्ची श्रद्धांजलि है।”
समापन संदेश – आत्मशुद्धि और सेवा की ओर
कार्यक्रम के समापन पर शिक्षिका एवं समाजसेवी ज्योति कुमारी ने कहा –
“गांधी–शास्त्री जयंती और विजयादशमी का यह त्रिवेणी पर्व हमें आत्मशुद्धि, सेवा और धर्मनिष्ठ जीवन की ओर अग्रसर करता है। यदि समाज इन आदर्शों को आत्मसात कर ले, तो निश्चित ही राष्ट्र का भविष्य और भी उज्ज्वल होगा।”
प्रतिभागियों की उपस्थिति
संगोष्ठी में अनेक विद्वान, समाजसेवी, शिक्षाविद् और छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे। प्रमुख उपस्थित जनों में प्रो. अशोक कुमार, डॉ. दिनेश कुमार, ज्ञानेश पाण्डेय, गजाधर लाल कटारियार, शंभू गुर्दा, डॉ. रविंद्र कुमार, रंजीत पाठक, किरण पाठक, संदीप मिश्रा, संदीप पाठक, सुनीता कुमारी, मृदुला मिश्रा, शंभू गिरी, चंद्रभूषण मिश्र, देवनारायण उपाध्याय, उषा देवी, डिंपल कुमारी, मनीष कुमार, कुमारी कंचन सिंह, अरुण ओझा, चांदनी कुमारी, नीलम पासवान, आनंद सिंह, दीपक पाठक, उत्तम पाठक, राजेश त्रिपाठी, फूल कुमारी, मनीष मिश्रा, देवेंद्र नाथ मिश्र, पवन मिश्र, सुनील गिरी, पूनम कुमारी, शंकरी विश्वजीत चक्रवर्ती, अच्युत मराठे, प्रतिमा कुमारी, जावेद अंसारी, विश्वनाथ यादव, फखरुद्दीन नौशाद अंसारी, कुंदन मिश्र, कुमारी अंबिका रानी, कुमारी नीतू, सुनील कुमार, नाजिया कशक, आईशा प्रवीण, इशरत, शोभा कुमारी, नौशाद अंसारी, प्रियांशु मिश्र, अनुज्ञा कुमारी और तनिष्क मिश्र विशेष रूप से सम्मिलित हुए।
इस प्रकार यह संगोष्ठी न केवल गांधी और शास्त्री जी के जीवन-दर्शन को स्मरण करने का अवसर बनी, बल्कि विजयादशमी के माध्यम से सत्य, धर्म और अहिंसा की विजय का संदेश भी समाज तक पहुँचाया। यह त्रिवेणी पर्व सभी प्रतिभागियों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध हुआ और संकल्प दिलाया कि उनके आदर्शों को जीवन में उतारकर ही एक सशक्त और उज्ज्वल भारत का निर्माण संभव है।
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