आज दिवाली रात अकेले बीत नहीं है पाती !
डॉ सच्चिदानन्द प्रेमीआज दिवाली रात अकेले बीत नहीं है पाती !
नाती पोतों से भरे सदन पर घर है सूना सूना ,
दर्द ज्वार से भाटा बनकर पल पल होता दूना ;
और निशिथिनी बनी निषंगी
निलयालिंद संधाती!
आज दिवाली रात अकेले बीत नहीं है पाती !
जले हृदय में दीये जितने तारे नभ में छाए,
जन परिजन सब सिमटे जैसे तुहिन परस हो जाए;
सरस प्रीत रसदीप तभीतक ,
जबतक श्यामा भाती!
आज दिवाली रात अकेले बीत नहीं है पाती !
मधुर प्रणय की बात सरसती अमा बनी जब राका,
पता नहीं मधुदीप बुझा कब और बुझा शलाका;
अन्तर्मन की ब्यथा- निशा में ,
किसको भेजूँ पाती!
आज दिवाली रात अकेले बीत नहीं है पाती !
उनकी छत से साध रहा है सुगना मधु संगीत,
आज हमारी हार सुनाता और तुम्हारी जीत ;
छक कर प्रणयसुधा तो पी ले,
रात ठहर कब पाती!
आज दिवाली रात अकेले बीत नहीं है पाती !
नहीं रही है रजनी काली राका ठहर न पाया ,
भले बुरे कब दिन हैं ठहरे किसे समझ है आया;
कौन कहाँ किसके हित ठहरा-
रीत सुलझ नहीं पाती!
आज दिवाली रात अकेले बीत नहीं है पाती !
सच है जग में कौन किसी का कबतक साथ निभाता,
स्नेहहीन हो बाती जलकर यह संदेश सुनाता;
एक लौ जबतक स्नेहिल था ,
तुम दीपक मैं बाती !
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