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स्वयं से परेशान

स्वयं से परेशान

आशा और निराशा में जीता है इंसान।
दुख से भागकर सुख को खोजता है।
मिल भी जाये सुख उसे अगर तो भी।
वो जिंदगी को दुखी रहकर ही जीता है।।


सुख का समाचार पाकर भी।
थोड़ी ही देर इंसान खुश होता है।
फिर उसी सोच में वापिस पहुँचता है।
ये उसकी मानसिकता का परिणाम है।।


दामन पर दाग लग जाये अगर तो।
जीवन परियांत वो मिटता नही है।
लाख उसे धोने की कोशिश करें।
पर वो दाग कभी धुलता नही है।।


इसी विचारधारा के कारण ही तो।
इंसान खुदको बदल नही पाता है।
आगे बढ़ने की वजह पीछे देखता।
जिससे वर्तमान को नही जी पाता।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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