"समीकरणों से परे"
पंकज शर्मासम और विषम के गणित से परे
जीवन ने सिखाया कि
साधारण जोड़-घटाव में
कभी भी शाश्वत उत्तर नहीं मिलते।
शब्द, कितने भी सादे हों,
धरातल पर आकर
अपने अर्थ खो देते हैं।
संधि-विच्छेद मात्र ध्वनि का खेल है,
सत्य का उद्घाटन नहीं।
समता की घोषणा
कागज़ पर ही सुशोभित है—
मानव के हृदय में
अब अधूरी गणना की तरह अधर में अटकी।
विषमता कभी अलगाव में नहीं,
वह तो निकटता की दरारों में
सबसे तीव्र स्वरूप में प्रकट होती है,
जहाँ स्पर्श पास है,
पर आत्माएँ कोसों दूर।
वियोग कभी निकटता का ही दूसरा नाम है,
जब समीप रहकर भी
हृदय संवाद नहीं कर पाते।
तब स्पर्श मौन बन जाता है,
और मौन सबसे क्रूर विभाजन।
योग भी दूरी में घटित होता है—
जब मीलों दूर रहकर
मन एक ही तरंग पर धड़कते हैं।
निकटता वहाँ नहीं जहाँ देह है,
निकटता वहाँ जहाँ चेतना एकाकार हो।
जीवन की प्रयोगशाला में
हर सिद्धांत असफल हुआ,
क्योंकि गणित की कसौटी पर
अनुभूति कभी खरी नहीं उतरी।
समय ने सिखाया—
सत्य, समीकरणों का परिणाम नहीं,
बल्कि अनुभव की अधूरी परिणति है।
इस प्रकार जीवन
संख्याओं और शब्दों से परे
एक अनुत्तरित प्रश्न बनकर खड़ा है।
सम और विषम के सारे भेद
अंततः उसी मौन में विलीन हो जाते हैं,
जहाँ उत्तर नहीं—
केवल अस्तित्व की गूढ़ प्रतिध्वनि है।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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