Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

"पथ का अनजाना बुझता दीप" ​

"पथ का अनजाना बुझता दीप" ​

पंकज शर्मा
ये सोपान नहीं, विरह की रेखा, जिन पर बिछा है आत्मा का हार। यह ओढ़न नहीं, स्मृति की चादर, जिस पर अनंत का अस्पष्ट भार। ​ नयन नहीं मूँदे, ये स्वप्न टूटे, खो गया साधना का उद्देश्य गीत। हर श्वास में एक मौन निवेदन, जीवन हुआ है अज्ञात का मीत। ​ यह हाथ नहीं, याचना है मेरी, उस क्षितिज की निशा से अंतिम। बस स्वीकार करे तिमिर की देवी, यह पथ का बुझता हुआ असीम। ​ ऊपर नहीं, दूर कहीं आशा का स्वर, स्वर्ग की मृदु कल्पना अकेली। पर यह पथिक यहीं विलीन हुआ, जैसे विरह की अधूटी पहेली। ​ पाषाण नहीं, ये कठोर नियतियाँ, जो मूक हो मेरा दुःख देखतीं। मानो पूछतीं हैं प्रश्न अमिट, क्यों दीप बुझा, जब उषा थी निकट? ​ यह विश्राम नहीं, यह अंतिम आँसू, जो सीढ़ी के संग निर्झर सा ढला। किस मंजिल से आग्रह था इतना, कि प्राण का पंछी यहीं छला। ​ क्या हार नहीं, अपरिचित का प्रेम है, जो साधना में यहीं पूर्ण हुआ। ऊँचाइयों से मुक्त हुआ बंधन, अज्ञात में ही शांत चूर्ण हुआ।

हम राग नहीं, द्वेष नहीं हैं, बस क्षणभंगुर मिट्टी का अनुदान। यह चित्र नहीं, प्रतीक वेदना का, अधिकार है बस आँसू का दान।

स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित "
कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ