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चरवाहे: प्रकृति के अनमोल प्रहरी और सतत जीवनशैली के गुप्त सूत्रधार

चरवाहे: प्रकृति के अनमोल प्रहरी और सतत जीवनशैली के गुप्त सूत्रधार

सत्येन्द्र कुमार पाठक
बहुत समय पहले की बात है, एक हरे-भरे गाँव के पास राजू नाम का एक चरवाहा रहता था। राजू मुश्किल से 8 साल का होगा, यानी डुग्गु की उम्र का! उसके पास 20 बकरियाँ और 15 भेड़ें थीं। उसकी भेड़ें इतनी सफेद और गोल-मटोल थीं कि पुच्चू उन्हें देखकर तुरंत गले लगाना चाहेगा! राजू की बकरियाँ और भेड़ें , गाएह मेशा खुश रहती थीं, क्योंकि उन्हें हमेशा सबसे अच्छी और ताज़ी घास मिलती थी। गाँव के बड़े चरवाहे भी राजू से पूछते थे, "अरे राजू, तुम तो इतने छोटे हो! तुम्हें कैसे पता चलता है कि कहाँ सबसे हरी घास मिलेगी?" राजू मुस्कुराता और कहता, "यह कोई जादू नहीं, यह तो ज़मीन की भाषा है जो मुझे मेरे दादाजी ने सिखाई है।
राजू के दादाजी ने उसे एक खास ज्ञान दिया था, जिसे वह अपनी आँखों और पैरों से सीखता था। यह ज्ञान उन्हें बताता था कि किस मौसम में ज़मीन कहाँ सो रही है और कहाँ जाग रही है। गर्मी की छुट्टी (पहाड़ों की तरफ): जब गाँव के मैदानों की घास तेज़ धूप से पीली पड़ने लगती थी (जैसे कभी-कभी तुम्हारे पापा की कार धूप में तप जाती है!), राजू अपनी बकरियों को लेकर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों की ओर चल पड़ता था। वह जानता था कि पहाड़ों पर बर्फ़ पिघलने के कारण नई, कोमल घास उगती है। यह उनके लिए पहाड़ों पर छुट्टियाँ मनाने जैसा होता था! सर्दी का घर वापसी (मैदानों की तरफ): जैसे ही पहाड़ों पर ठंड बहुत बढ़ने लगती थी (इतनी ठंड कि राजू को चार स्वेटर पहनने पड़ते!), वह अपने झुंड को लेकर वापस मैदानी इलाकों की ओर आ जाता था। वह जानता था कि नीचे मैदानों में ठंड कम होगी और सूखी, पर खाने लायक घास मिल जाएगी। इस तरह, राजू कभी भी एक जगह पर बहुत देर तक नहीं रुकता था। वह अपने झुंड को हमेशा चलता रखता था, इसे ही घुमंतू चराई कहते हैं।राजू का सबसे बड़ा रहस्य यह था कि वह अपनी चराई से ज़मीन को बीमार नहीं होने देता था।अगर वह देखता कि उसकी बकरियों ने किसी जगह की घास को बहुत छोटा कर दिया है, तो वह तुरंत आगे बढ़ जाता था। वह जानता था कि अगर वह वहीं रुका, तो ज़मीन की घास दोबारा नहीं उग पाएगी—यह उस ज़मीन को बर्बाद कर देता, जिसे अति-चराई कहते हैं। जब राजू की बकरियाँ और भेड़ें घास खाकर गोबर करती थीं, तो वह गोबर ज़मीन के लिए सबसे अच्छी प्राकृतिक खाद बन जाता था। राजू अपनी लाठी से जानवरों को हाँकता नहीं था, बल्कि वह अपनी प्रकृति की रक्षा करता था। वह एक चरवाहा नहीं, बल्कि प्रकृति का अनमोल प्रहरी था, जिसने अपनी बकरियों के पेट भरने के साथ-साथ मिट्टी की सेहत का भी ख्याल रखा। राजू का यह काम सिखाता है कि हम इंसानों को प्रकृति का इस्तेमाल इस तरह करना चाहिए कि प्रकृति को भी खुद को ठीक करने का समय मिल जाए।
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