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आधुनिक जमाने का घर देखो

आधुनिक जमाने का घर देखो ,

जहाॅं ऑंगन नहीं तो द्वार कहाॅं ।
इस बढ़ती मंहगाई के जमाने में ,
किसी के पास धन अपार कहाॅं ।।
किंतु होतीं बहुत बड़ी बड़ी बातें ,
बावन बीघे की पुदीने की खेती ।
नजर आने लिते दिन में ये तारे ,
जब जन्म ले ले घर एक बेटी ।।
जिस घर में कोई ऑंगन ही नहीं ,
वह बच्चों हेतु बनता कैदखाना ।
पापा बैठते घर में दारोगा बनके ,
मम्मी चलातीं बैठकर ये थाना ।।
रिश्तेदार कोई यहाॅं आते ही नहीं ,
भूल से कोई आए तो ठौर नहीं ।
नये घर की कामना सब हैं करते ,
बनते वक्त करते ही गौर कहाॅं ।।
तब मस्तिष्क में होती एक बात ,
घर बन जाए सस्ता में अच्छा ।
औकात दिखते हैं घर बनाने में ,
अन्यथा बातें लच्छा के लच्छा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
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