काव्य रथी पर आसक्त कविता कामिनी
खिले उर शुचिता प्रसून,मिटे दुःख संकट भय।
बहे संवेदन सरि निर्झर,
सृष्टि आभा सुख शांति मय ।
संबंध उत्संग अपनत्व अथाह,
नेह परिध विस्तार प्रदायिनी ।
काव्य रथी पर आसक्त कविता कामिनी ।।
उमंगित जीवन गतिमान,
फले फूले आशा उद्यान ।
प्रफुल्लित जन जन प्राण,
मुदित मन गाए नव रस गान ।
ह्रदय मणि विमल श्रृंगार,
बजे सांसों संग सितार रागिनी ।
काव्य रथी पर आसक्त कविता कामिनी ।।
अमिय रस वाणी रस धार,
बहे करुणा ममता प्यार ।
आत्म बल आभास पथ,
नभ धरा उल्लास अपार ।
कलयुग कपाल उन्नत प्रभा,
सतयुग सम आनंद वाहिनी ।
काव्य रथी पर आसक्त कविता कामिनी ।।
मनुज नित ध्यान अंतस्थ,
मिटे तम जागृत सद्ज्ञान ।
दया सेवा संयम युक्त,
जग पटल देवत्व आह्वान।
दिव्य प्रज्ञा भव्य अभिवंदन,
सजे पावन स्वर संग भामिनी ।
काव्य रथी पर आसक्त कविता कामिनी ।।
*कुमार महेंद्र*
(स्वरचित मौलिक रचना)
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