छठ महापर्व: तीसरे दिन 'संध्या अर्घ्य'
सत्येन्द्र कुमार पाठक
छठ महापर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान का तीसरा दिन सबसे प्रमुख होता है, जिसे संध्या अर्घ्य या पहला अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। खरना के अगले दिन, यह पूजा विधि छठ व्रती के 36 घंटे के निर्जला व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। इस दिन व्रती डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी उपासना करते हैं और छठी मैया से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।स्वास्थ्य और सौभाग्य: संध्या अर्घ्य से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे स्वास्थ्य लाभ और सौभाग्य में वृद्धि होती है।संकट निवारण: यह अर्घ्य सभी प्रकार के कष्टों और संकटों को दूर करने वाला माना जाता है, क्योंकि सूर्य देव प्रत्यक्ष देवता हैं।छठी मैया की पूजा: इस दिन मुख्य रूप से छठी मैया की पूजा की जाती है, जो संतान के स्वास्थ्य, दीर्घायु और सुख-समृद्धि की देवी हैं।संध्या अर्घ्य की मुख्य विधिसंध्या अर्घ्य की तैयारी और विधि इस प्रकार है:
उपकरण और सामग्री तैयार करना:बांस की टोकरी (सूप/दउरा): अर्घ्य की सामग्री रखने के लिए।प्रसाद: ठेकुआ, चावल के लड्डू (कसार), फल (केला, गन्ना, आदि), नींबू, मूली, हल्दी की गांठ। दीपक और धूप: मिट्टी के दीपक (कोसी) और धूपबत्ती।अर्घ्य का जल: दूध और गंगाजल मिले हुए जल का लोटा।व्रती अपनी टोकरी (सूप/दउरा) में सभी सामग्री लेकर पारंपरिक तरीके से परिवारजनों के साथ नदी, तालाब या निर्मित घाट की ओर जाते हैं।कई व्रती दंडवत करते हुए भी घाट तक पहुँचते हैं, जो उनकी गहन आस्था को दर्शाता है।घाट पर पहुँचकर व्रती एक निर्धारित स्थान पर मिट्टी के छोटे-छोटे हाथी या चौकोर वेदी बनाते हैं, जिसे 'छठी घाट' कहते हैं।इसी स्थान पर बांस की टोकरी रखी जाती है और दीपक जलाए जाते हैं।जैसे ही सूर्य अस्त होने लगते हैं, व्रती पानी में खड़े होकर या घाट पर सूर्य की ओर मुख करके खड़े होते हैं।बांस के सूप को सिर के ऊपर उठाकर उसमें रखी सभी सामग्री के साथ, लोटे से धीरे-धीरे डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दौरान सूर्य मंत्रों का जाप किया जाता है। संध्या अर्घ्य के बाद कई स्थानों पर छठी मैया के लिए कोसी भरी जाती है, जिसमें मिट्टी के बड़े पात्र में प्रसाद रखकर दीपक जलाए जाते हैं। यह विधान मुख्य रूप से संतान की मनोकामना पूर्ण होने पर किया जाता है। संध्या अर्घ्य के बाद व्रती घर लौटते हैं, लेकिन उनका 36 घंटे का निर्जला व्रत जारी रहता है। अगले दिन सूर्योदय के समय उषा अर्घ्य (दूसरा अर्घ्य) देने के बाद ही व्रत का पारण (समापन) किया जाता है।
खरना छठ महापर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान का दूसरा दिन होता है, जिसे लोहंडा भी कहा जाता है। यह दिन शुद्धता, पवित्रता और भक्ति का प्रतीक है और इसका बहुत अधिक धार्मिक महत्व है।शुद्धता: 'खरना' का अर्थ है शुद्धिकरण। इस दिन व्रती (व्रत रखने वाले) शारीरिक और मानसिक रूप से पूर्ण पवित्रता का पालन करते हैं, ताकि वे अगले दो दिनों के कठोर व्रत के लिए तैयार हो सकें।छठी मैया का आगमन: ऐसी मान्यता है कि खरना के दिन ही छठी मैया व्रती के घर में प्रवेश करती हैं।36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत: खरना की शाम को प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती का 36 घंटे का कठिन निर्जला (बिना पानी) व्रत शुरू हो जाता है।व्रत: व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास (बिना अन्न और जल) रखते हैं।प्रसाद निर्माण: शाम के समय, मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी का उपयोग करके विशेष प्रसाद बनाया जाता है। आम की लकड़ी का प्रयोग शुद्धता और सात्विकता के लिए किया जाता है।गुड़ की खीर (रसिया): यह चावल, दूध और गुड़ से बनाई जाती है।रोटी/पूरी: यह घी लगी हुई गेहूं के आटे की रोटी या पूड़ी होती है। पूजा और पारण: यह प्रसाद सबसे पहले सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित (भोग लगाया) किया जाता है। इसके बाद, व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं, जिसे पारण कहते हैं। व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही परिवार के अन्य सदस्य इस प्रसाद को खाते हैं। इस दिन साफ-सफाई और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।प्रसाद बनाने में किसी भी अशुद्ध वस्तु या अन्य लकड़ी का प्रयोग वर्जित होता है।, खरना वह दिन है जब व्रती पूरी निष्ठा और संयम के साथ व्रत की शुरुआत करते हैं और प्रसाद ग्रहण करने के बाद अगले 36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत की प्रतिज्ञा लेते हैं।
छंदबद्ध रचना: खरना, अर्घ्य और सूर्योपासना
प्रथम दिवस नहाय-खाय बीता, दूजा दिन खरना है आता।
व्रती जन काया मन शुद्ध करें, निर्जल रह संकल्पित धीर धरें।
मिट्टी के चूल्हे पर रीत यही, रसिया खीर बने शुद्ध सही।
गुड़-चावल से प्रसाद पुकारा, छठी मइया का मिले सहारा।
संध्या को भोग लगे जब मीठा, अन्न-जल त्यागें, व्रत हो तीखा।
इक बार ही भोजन तब खावें, फिर चौबीस घंटे नीर न पावें।
तृतीया तिथि अति पुण्य कहावे, बाँस सूप सब घर सजवावे।
ठेकुआ और कसार बनाएँ, नए फल, गन्ना डाल सजाएँ।
अर्घ्य हेतु लोटा जल भरती, छठी मइया की सेवा करती।
घाट किनारे भीड़ तब होती, व्रतियों के मन में श्रद्धा सोती।
अस्ताचल को रवि जब जाते, दीपक घाट किनारे जगमगाते।
जल में खड़े सभी व्रती होते, सूर्य देव के चरणों को धोते।
सूप उठाएँ, शीश नवावें, दूध और जल अर्घ्य चढ़ावें।
"ॐ सूर्याय नमः" जप होता, संकट दुख सब दूर तब होता।
जीवन देने वाले को वंदन, दूर करें सब पाप और बंधन
रात भर पूजा गीत हैं गाते, भोर भए फिर घाट पर जाते।
चतुर्थ दिवस का अति महत्व, जागे सूर्य का है ममत्व।
उदयमान को फिर अर्घ्य देते, व्रत का कठोर तप पूरा करते।
संतान हेतु आशीष है माँगा, छठी मइया का प्रेम न तागा।
सूर्य देव हैं ऊर्जा के दाता, छठी मैया हैं सबकी माता।
इस महापर्व का संयम भारी, जन-जन की हो मंगलकारी।
खरना से आरंभ यह व्रत है, चारों दिन शुद्धता की तैयारी ।
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