गंगा का किनारा
गगन का सितारा हो ,गंगा का किनारा हो ,
बरसे शीतल चाॅंदनी ,
मंद पवन सहारा हो ।
सावन बारिस रिमझिम ,
जब उमर कुॅंआरा हो ,
सोच गहरी मुद्रा का ,
हृदय में कुछ प्यारा हो ।
किस्मत का वो मारा हो ,
समय से वो बेचारा हो ,
किसका ले अब सहारा ,
जब जीवन ही हारा हो ।
उल्टी हो गंगा की धारा ,
जगदीश का सहारा हो ,
लगे मजधार भी किनारा,
जब समय भी न्यारा हो ।
जिसपे जीवन ये वारा हो ,
ईश ही जिसे प्यारा हो ,
झुके जमाना उसके आगे ,
जब ईश का इशारा हो ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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