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"मानवीय संवेगों का महत्त्व"

"मानवीय संवेगों का महत्त्व"

पंकज शर्मा
​हमारे संवेग, चाहे वे हर्ष के हों या विषाद के, हमारी मानवता की आधारशिला हैं। ये केवल क्षणिक अनुभूतियाँ नहीं, अपितु जीवन के गहनतम पाठों के वाहक हैं। यहाँ तक कि हृदय को विचलित करने वाले अप्रिय मनोभाव—भय, क्रोध, या उदासी—भी एक गूढ़ उद्देश्य लिए होते हैं। ये हमें सीमाओं का बोध कराते हैं और भीतर किसी अनसुलझे सत्य की ओर इशारा करते हैं। इन भावनाओं को दुर्बलता मानकर कैद करना या तिरस्कृत करना स्वयं को पूर्ण अनुभव से वंचित करना है।


​यदि हम इन अंतरंग स्वरों की उपेक्षा करते हैं, तो ये शांत होने के बजाय, भीतर ही भीतर पुष्ट होकर, अधिक प्रखर और उग्र रूप में बाहर आते हैं। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि प्रत्येक अनुभव, सुखद हो या दुखद, हमारी चेतना के विकास हेतु अनिवार्य है। अपने संवेगों को स्वीकारें, उन्हें समझें, और उन्हें अपनी यात्रा का मार्गदर्शक बनने दें, क्योंकि इसी स्वीकृति में हमारी वास्तविक शक्ति निहित है।


. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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