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घर बसा दो

घर बसा दो

अकेले हैं हम अकेले हो तुम चले आओ।
मेरा घर द्वार सूना है बसा दो।
अकेले हैं हम अकेले हो तुम चले आओ।।


ये तन्हाई मेरी और ढलती मेरी उम्र।
ये गुजरते हुए दिन और आते हुए दिन।
मुझे अब इनसे बहुत लगता है डर।
अकेले हैं हम, अकेले हो तुम, चले आओ।
मेरा घर द्वार सूना है, बसा दो।।


तुम्हें हम देखते है क्या तुम भी ढूँढते हो।
ये हैं दिल जो मेरा कही लगता नही है।
इसलिए तेरी मुझे याद आती रहती।
अकेले हैं हम अकेले हो तुम चले आओ।
मेरा घर द्वार सूना है, बसा दो।।


मुझे क्यों छोड़ गये तुम
खता क्या मैंने की थी।
तुझे मालूम नहीं क्या
तेरे बिना हम अधूरे।
मुझे तेरी जरूरत, तुझे क्या नही जरूरत।
अकेले हैं हम, अकेले हो तुम, चले आओ।
मेरा घर द्वार सूना है, बसा दो।।


अकेले हैं हम, अकेले हो तुम, चले आओ।
मेरा घर द्वार सूना है, बसा दो।
अकेले हैं हम अकेले हो तुम चले आओ।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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