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दर्द की हसीं दास्तां

दर्द की हसीं दास्तां

रमाकांत सोनी

ना यूं समझो अक्सर रूठ जाता हूं मैं।
शब्द बाण सुन तीखे टूट जाता हूं मैं।
मिलते धोखे पर धोखे अपनों से हमें।
जमीन पांव से सरके फूट जाता हूं मैं।


जमाने में सीखा नित चलना अकेला।
यह दुनिया है यारों मतलब का मेला।
हौसलों से ही उड़ता हूं उड़ाने जहां में।
सच कह दूं तो खड़ा हो जाता झमेला।


इन आंखों में चमक से आशाएं भरी है।
ये जिंदगी अजब मुश्किलों से घिरी है।
अपनापन को यूं ही तरसता रहा हूं मै।
वो यादें पुरानी घायल दिलों में भरी है।


दर्द की हसीं जब दास्तां सुनाता हूं मैं।
गीतों गजलों में रसधार बहाता हूं मैं।
कविता से शब्दों का सार समझ लेना।
हाल कैसा मेरा कलम को बताता हूं मैं।


रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान रचना स्वरचित व मौलिक है
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