जिंदगी की कहानी
मैं जिंदगी की अपनी, कहानी सुनाता हूँ।कैसे मैं जीता हूँ, ये भी बताता हूँ।
हर पल जीवन के मैं, फिर से दोहराता हूँ।
हाँ मैं दोहराता हूँ..।
मैं जिंदगी की अपनी, कहानी सुनता हूँ।।
जन्म लिया मैंने एक, जमीदार के घर में।
खुशियों की भर मार थी, हमारे घर में।
जिससे मिला मुझे बिन मांगे सब कुछ।
इसलिए मेरी खुशियों का ठिकाना न था।
हाँ ठिकाना न था..।।
मैं जिंदगी की अपनी कहानी सुनाता हूँ।।
जो भी मैंने मांगा वो मुझको मिला।
क्योंकि सालों के बाद जो जन्मा हुआ था।
इसलिए मेरा सिक्का घर में ज्यादा चला.।
हाँ ज्यादा दिनों तक चला।।
मैं जिंदगी की अपनी, कहानी सुनाता हूँ।।
दादा-दादी के साथ रिश्ता बहुत गहरा था।
दादा के लाड़ के कारण राज चला था।
इसलिए कोई कुछ बोल सकता नही था।
इसलिए जिंदगी को मस्ती से जीता था..।
हाँ मौज-मस्ती से जीता था।।
मैं जिंदगी की अपनी कहानी सुनाता हूँ।
कैसे मैं जीता हूँ, ये भी बताता हूँ...।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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