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मिटे सकल पीड़ा अज्ञान

भगवान धन्वंतरि की जय

मिटे सकल पीड़ा अज्ञान

रचना ---
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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समुद्र मंथन जब जब हूआ,
अमृत संग लियो तेज निखरा।
कर में कलश, भाल पर बासा,
धन्वंतरि लाए शुभ संदेशा।

चिकित्सा के आदि सृजनहार,
जिनसे उजियारे जगत अपार।
आयुर्वेद जिनकी दी विरासत,
रोग हरे, दे जीवन आश्रय।

नाड़ी, दोष, रचना संपूर्णा,
काया को दी दृष्टि विशुद्धा।
जड़ी-बूटी का राज बतायो,
प्रकृति को गुरु रूप बनायो।

रोग विनाशक, सुख के दाता,
भक्तन के हित सदा विधाता।
जपे जो नाम धन्वंतरि प्रभु,
रहे न रोग, मिटे सब दुखभू।


वंदन तुमको बारंबारा,
देव चिकित्सक, सुख के द्वारा।
करो कृपा, तन-मन निखराओ,
हमको स्वास्थ्य सुधा पिलाओ।


आयु-चिकित्सा सेवा नित करें,
प्रकृति-मार्ग से रोग हरे।
रवि शंकर "राकेश" पुनीता,
जन-जन के हित तन-मन जीता।


जन-जन की है यही पुकारा,
तन-मन रहे सदा उजियारा।
रहे निरोगी देश हमारा,
कृपा करो अब हे प्रभु प्यारा।


धन्वंतरि की दृष्टि अपारा,
कर दे रोगों का संहारा।
जपे हृदय से जो भी नाम,
पावे जीवन-धन अरु धाम।


धन्वंतरि को करें प्रणामा,
मानें देवों में श्रीप्रधाना।
जपे निरंतर नाम महान, मिटे सकल पीड़ा अज्ञान।
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