Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

"अहं और आत्मा का शाश्वत द्वंद्व"

"अहं और आत्मा का शाश्वत द्वंद्व"

पंकज शर्मा
उक्त उद्गार मानवीय अंतर्द्वंद्व की उस गहन जटिलता को उद्घाटित करते हैं, जहाँ 'अहं' का केन्द्रापसारी आकर्षण एवं 'आत्मा' का परोपकारी विस्तार, दो ध्रुवों के मध्य एक शाश्वत संघर्ष को जन्म देता है। अहं का स्वभाव है—समस्त ऊर्जा, प्रतिष्ठा एवं अधिकार को स्वयं में समाहित कर लेना—एक आत्म-केन्द्रित वृत्त का निर्माण करना। इसके विपरीत, आत्मा का नैसर्गिक प्रबोधन—प्रेम, करुणा एवं निस्वार्थता की 'बहिर्मुखी' धारा को प्रवाहित करना है। इस प्रकार, जब ये दो विपरीत गतियाँ, 'आकर्षण' एवं 'विसर्जन', एक ही चेतना-पटल पर संयुक्त होती हैं, तो जीवन एक 'भयंकर जटिलता' का ताना-बाना बन जाता है, जहाँ व्यक्ति स्वयं के स्वार्थ-सिद्धि एवं परमार्थ-सिद्धि के मध्य पेंडुलम की भाँति दोलायमान रहता है।

​यह क्लिष्टता ही वस्तुतः आत्मिक परिष्कार की भूमि है। इस द्वन्द्व से मुक्ति का मार्ग आत्मा के स्वभाव—'बाहर की तरफ़ देने'—को सबल करने में निहित है। जब हम अपनी चेतना के नैर्ष्य एवं वैयक्तिक अहम्मन्यता को 'आत्मिक-विसर्जन' की महत्ता से अधिभूत करते हैं, तब यह जटिलता विसर्जित हो जाती है। जीवन का चरम उत्कर्ष इसी में है कि हम अहं के संकुचनकारी बंधन से मुक्त होकर, आत्मा के 'दान' एवं 'विस्तार' की ओर प्रवृत्त हों। यह 'परार्थ-परायणता' ही मानव को उसके वास्तविक, अविचल एवं परम-सत्य के निकट पहुँचाती है, जहाँ 'ग्रहण' की लालसा नहीं, अपितु 'अर्पण' का सहज आनंद व्याप्त होता है।


. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ