छठ महापर्व : प्रभात अर्घ्य और पारण
✍️डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"कांचन किरणों में नहाए घाट,
अर्घ्य समर्पित जलमय।
सूरज उगे तो झुके ललाट,
गायन गूंजे रसमय॥
सिंदूर रचे अरुणा अंचल,
गंगा करे उजियारा।
आरती धरे सकल संसार,
जागे सुरभित ध्याना॥
करवा में दीप जले अनुराग,
थाली सजे प्रसादम।
भक्तिन की आँख भरे उमंग,
बिखरा छटा विहंगम।।
अर्घ्य पचरा के संग पूर्ण,
छूते जल में अंबर।
पारण समय हृदय अभिनंदन,
हरषित हो जग सुंदर॥
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