"राष्ट्रपिता: भारत मां का अपमान"
रचनाकार ------- डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"राष्ट्र का हो सकता है कोई रक्षक,
सेवक, सपूत, या कर्मशील पक्षधर।
पर पिता?
कैसे कहें किसी को हजारों वर्षों के, राष्ट्र का जनक?
भारत कोई नव निर्मित राष्ट्र नहीं,
नहीं बना वह सदी–दो सदी पहले।
वेदों की ऋचाओं से बँधा,
महादेव के चरणों से पवित्र,
यह राष्ट्र सदा से रहा है
एक सांस्कृतिक चेतना का दीप।
"भरत" थे एक महान सम्राट,
जिनके नाम से यह भूखंड "भारत" कहलाया।
तो क्या कोई स्वयं को कह सकता है
उस माँ का पिता,
जिसने उसे जन्म दिया नहीं !
बल्कि स्वयं थी उसकी जन्मदात्री?
यह कोई भ्रांति नहीं,
न ही स्वयं का सम्मान।
किसी को "राष्ट्रपिता" कह कर,
क्या कर रहे हम राष्ट्र का अपमान?
कैसी है यह सोच विकृत,
जो राष्ट्र को बना देती है
एक बच्चे की तरह असहाय
जिसे किसी एक ने जन्म दिया हो?
नहीं,
राष्ट्र हमारा सनातन है,
अनादि, अजेय, अखंड।
जो कहे स्वयं को राष्ट्र का पिता,
वह या तो अज्ञानी है,
या उदण्ड,
या फिर उसका उद्देश्य है
सनातन संस्कृति का करना
खंड-खंड।
राष्ट्रपिता कहना, राष्ट्र को गाली है,
नागरिकता भारत का जाली है।
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