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दियरी के परब

दियरी के परब

आईल बाटे दियरी के परब ,
लक्ष्मी गणेश के घरे बोलाईं ।
आपन राग द्वेष सब दूर कके ,
अंहरिया में ॲंजोरिया मॅंगाईं ।।
दियरी बाटे बड़ प्रकाश परब ,
आपन अंहरिया दूर भगाईं ।
दोसरो के परब बाकी ना रहे ,
सहयोग में तनी हाथ बॅंटाईं ।।
दुआ दया के दीया सजा लीं ,
ईमान के तेल दीया में डारीं ।
ईर्ष्या द्वेष सब दूर भगा लीं ,
अब प्रेम प्यार के बाति बारीं ।।
लोक लाज आपन रक्षा करीं ,
सदाचार सद्व्यवहार अपनाईं ।
चकाचौंध के मत फेर में पड़ीं ,
माटी के दीया किन के लाईं ।।
सबके घर में दियरी बरत होखे ,
त आपन दियरी सुफल बाटे ।
आजु बाजु कोई भूखे सुतल ,
आपन दियरी निष्फल बाटे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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