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"राधा बाबा - जीवन लीला"

 "राधा बाबा - जीवन लीला" (दोहों में) 

रचना ---
डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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(आविर्भाव: 13 जनवरी 1913)
1.
मगध धरा रत्नगर्भा, पुण्यभूमि संजीव।
राधा बाबा प्रकट भए, भक्ति सागर जीव।।
2.
नाम चक्रधर जन्मते, पखरपुर गाँव विशाल।
ब्राह्मण कुल की शान थे, थे तेजस्वी लाल।।
3.
विद्या में अद्भुत निपुण, प्रतिभा अनुपम ज्ञान।
नेतृत्व की थी ज्योति सी, करते सब सम्मान।।
4.
देश समय था गुलाम तब, मन में उठी पुकार।
त्याग दिया अध्ययन तुरत, किया स्वतंत्र विचार।।
5.
कृष्णजन्म की भूमि से, ली उन्होंने प्रेरणा।
फिर दर्शन में रम गए, वेदान्त बनी धरेणा।।
6.
शंकर मत के संग में, ब्रह्म निराकार जिया।
‘नेति-नेति’ कह रूप को, तत्व रूप में पिया।।
7.
किन्तु हृदय झुका जबसे, राधा के चरणों में।
प्रेम सुधा बरसी वहीं, भावों के संगनों में।।
8.
दर्शन राधा रानी का, पाया जब सौभाग।
ब्रह्म हुआ साकार तब, खोया आत्म अनुराग।।
9.
सेवा में जो रमे रहे, लोकमंगल ध्येय।
हुगली तट के दृश्य ने, कर दिया अंतःक्षेप।।
10.
कुष्ठ रोगियों को तपा, देख हृदय अशांत।
सेवा में लग गए वहीं, बिना तृषा-क्लांत।।
11.
रामसुखदास मिले वहाँ, शुभ संसर्ग अपार।
जयदयाल संग की सखा, हरि-वाणी विस्तार।।
12.
गीतावाटिका बनी जब, तप की भूमि महान।
हनुमान पोद्दार भी, भावुक हुए प्रणाम।।
13.
सत्संग, सेवा, स्वाध्याय, लेखन साथ-संग।
प्रेम सुधा के ग्रंथ से, भाव बने फिर रंग।।
14.
कृष्ण लीला चिन्तन रचा, प्रेम सुधा की धार।
“जय जय प्रियतम” बना, भक्तों का आधार।।
15.
राधाष्टमी उत्सव किया, प्रारंभ उन्हीं से नित्य।
जो गीता वाटिका में, बढ़ता प्रेम अनित्य।।
16.
नेह निकुंज में आज भी, छवि उनकी सुकुमार।
विग्रह से देते सुखमय, भक्तों को उपकार।।
17.
तेरह अक्टूबर को, देह धरा को त्याग।
राधा-रस में लीन हो, ब्रह्म रूप अनुराग।।
18.
‘रवि राकेश’ नमन करे, उस संत महातेज।
जिनसे पावन पथ मिले, जीवन हो समवेज।।


ऊँ राधायै नमः
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