"अपनी शक्ति से संघर्ष करो"
पंकज शर्मा
मनुष्य का वास्तविक वैभव उसकी बाह्य विजय में नहीं, वरन् आत्मबल के उद्गम में निहित होता है। जो व्यक्ति अपने पथ पर अविचल निष्ठा और श्रम का दीप प्रज्वलित रखता है, वही जीवन के अंधकार को आलोकित कर पाता है। दूसरों की दुर्बलता को सीढ़ी बनाकर जो ऊपर उठता है, वह क्षणिक सम्मान का भागी तो बन सकता है, परंतु आत्मा की दर्पण-दृष्टि में सदा पराजित ही रहता है। सच्चा पराक्रमी वही है जो स्वयं की सीमाओं से युद्ध करता है — अपने आलस्य, भय और संदेह पर विजय प्राप्त करता है।
सफलता की दीर्घकालिकता उसी की होती है, जिसकी जड़ें परिश्रम और स्वाभिमान की मिट्टी में दृढ़ होती हैं। दूसरों की हार में आनंद खोजना आत्मवंचना के समान है, क्योंकि वास्तविक आनन्द तो उस संतोष में है जो अपने प्रयत्नों की पूर्णता से उपजता है। अतः आवश्यक है कि हम अपनी ऊर्जा को तुलना और प्रतिस्पर्धा के शोर से निकालकर आत्मसाधना की ओर मोड़ें। जब मनुष्य अपने भीतरी शत्रुओं पर विजय पा लेता है, तब बाहरी संसार उसके चरणों में स्वयं झुक जाता है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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