धनतेरस
अरुण दिव्यांशदियरी के परब बा निचकाईल ,
मुॅंह से निकालीं निमन भाखा ।
चल रहल बा सफाई सुथरा ,
छुट रहल बाटे खूब पटाखा ।।
आज बाटे धनतेरस के दिन ,
आज कुछ किनाए के चाहीं ।
जवना से लक्ष्मी आगमन होखे ,
धन्वंतरि के मुस्काए के चाहीं ।।
आज धन्वंतरि कुबेर के जयंती ,
उनके किरपा धन स्वास्थ्य बा ।
जहाॅं बरस जाई इनकर किरपा ,
धन बल सब कुछ अगाध बा ।।
कोटि कोटि सादर नमन बाटे ,
हमहूॅं राउर छोट भगत बानी ।
हमरो पर अब किरपा बरसाईं ,
जिंदे में हम त दिवगंत बानी ।।
मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार
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