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"स्वच्छंदता या संस्कार? – युवा पीढ़ी, विजातीय विवाह और सामाजिक मर्यादा की चुनौतियाँ"

"स्वच्छंदता या संस्कार? – युवा पीढ़ी, विजातीय विवाह और सामाजिक मर्यादा की चुनौतियाँ"

वर्तमान समय में समाज तेजी से बदलाव के दौर से गुजर रहा है। विज्ञान, तकनीक और शिक्षा ने युवा पीढ़ी को नई उड़ान दी है, लेकिन इस उड़ान में संतुलन और दिशा का अभाव दिखने लगा है। विशेषकर पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के प्रति युवाओं की सोच में जो परिवर्तन आया है, वह चिंता का विषय बनता जा रहा है।
आज के बच्चे इतनी स्वच्छंदता की ओर बढ़ चले हैं कि उन्हें न तो परिवार की मर्यादा का ध्यान रह गया है, न ही समाज की संवेदनाओं की परवाह। वे जीवन के निर्णय भावनाओं या तात्कालिक आकर्षणों के आधार पर लेने लगे हैं। इसी प्रवृत्ति का एक चिंताजनक परिणाम है – विजातीय विवाहों में बढ़ती प्रवृत्ति, जो भविष्य के लिए अनेक सामाजिक और सांस्कृतिक संकटों को जन्म दे रही है।

स्वच्छंदता का स्वरूप

स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में एक बारीक अंतर होता है। स्वतंत्रता जहां विवेकपूर्ण निर्णय और जिम्मेदारी से जुड़ी होती है, वहीं स्वच्छंदता सीमाओं की उपेक्षा करती है। आज के बच्चे मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया की दुनिया में पल-बढ़ कर भावनात्मक रूप से अति संवेदनशील हो गए हैं। वे विचार और अनुभूति की गहराई में जाने के बजाय, तात्कालिक निर्णयों में उलझ रहे हैं।

वे यह भूल जाते हैं कि विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, दो परिवारों, दो संस्कृतियों और दो जीवन पद्धतियों का संगम होता है। जब यह संगम बिना समरसता और सहमति के होता है, तो वह विवाह नहीं, विवाद का बीज बन जाता है।

विजातीय विवाह: सामाजिक मर्यादा पर चोट

विजातीय विवाह का अर्थ है — विभिन्न धर्म, जाति या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आने वाले दो लोगों का विवाह। जब यह विवाह सोच-समझकर, परिवार की सहमति से और सामाजिक स्वीकार्यता के साथ होता है, तब यह एक सुंदर उदाहरण बन सकता है। परंतु जब यह केवल भावनाओं, विद्रोह या व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर किया जाता है, तो यह परिवार में टूटन, सामाजिक विरोध और भावी पीढ़ी में अस्थिरता का कारण बनता है।

आज अनेक माता-पिता इस असहाय स्थिति में हैं कि वे अपने बच्चों को रोक भी नहीं सकते, और समझा भी नहीं सकते। बच्चों के इस विद्रोही रवैये ने पीढ़ियों के संवाद को तोड़ा है, और पारिवारिक मूल्य धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं।

विवाह: केवल अधिकार नहीं, दायित्व भी

युवाओं को समझना होगा कि विवाह जीवन का एक गंभीर और स्थायी निर्णय होता है। यह केवल एक आकर्षण नहीं, बल्कि दो जीवनों के मध्य सहयोग, समर्पण और समझौते की परीक्षा होती है।

जब युवा केवल अपने अधिकारों की बात करते हैं, और अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं, तब पारिवारिक ताना-बाना कमजोर पड़ता है। यदि परिवार की भावना, बुजुर्गों की इच्छा और सामाजिक मर्यादाओं का सम्मान न किया जाए, तो उस विवाह में न स्थायित्व रह सकता है, न सुख।

समस्या का समाधान: संवाद और संस्कार

इस समस्या का समाधान न तो कठोर रोक-टोक है, न ही आधुनिकता को पूरी तरह नकारना। समाधान है – संवाद और संस्कार।

माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को सिर्फ़ आज्ञाकारी नहीं, विवेकशील बनाएं। उन्हें परिवार और समाज की मर्यादाओं का महत्व समझाएं। साथ ही, बच्चों को भी चाहिए कि वे अपनी स्वतंत्रता का उपयोग विवेक और संतुलन के साथ करें।

विवाह जैसे महत्वपूर्ण निर्णयों में परिवार की सहमति लेना न केवल एक औपचारिकता है, बल्कि यह जीवन की स्थिरता और सफलता का आधार है।

आज आवश्यकता है एक ऐसे सामाजिक वातावरण की, जहाँ संस्कार और स्वतंत्रता दोनों साथ-साथ चल सकें। युवाओं को यह समझना होगा कि पारिवारिक मर्यादा को तोड़कर लिया गया कोई भी निर्णय भविष्य में अकेलापन, पछतावा और सामाजिक उपेक्षा का कारण बन सकता है।

यदि हम चाहते हैं कि हमारी संस्कृति, हमारे परिवार और हमारे मूल्य जीवित रहें, तो हमें आज ही इस दिशा में सजग होना होगा। वरना आने वाली पीढ़ियाँ न घर की रहेंगी, न घाट की।

"स्वच्छंदता में नहीं, संस्कार में छुपा है समाज का भविष्य।"

लेखिका सुनीता पाण्डेय दिव्य जीर्णोद्धार फाउंडेशन की निदेशिका है |
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