"शिव-शक्ति का अव्यक्त राग"
पंकज शर्मायह करवा चौथ नहीं,
प्राणों का आवाहन है।
उत्सव नहीं यह,
मौन अखंड संकल्प।
हर उर में गूँजे—
अविनाशी शक्ति का नाद।
जो पार्वती तप से प्रकट हुई,
शिव-मिलन की अमर पुकार बनी।
देह का विराम,
अन्न का त्याग नहीं—
यह तप है,
प्रेम के सत्य की खोज।
नारी युगों से साधती रही,
भक्ति में कर्म, कर्म में शक्ति।
जब तक शक्ति न जागे,
पुरुषार्थ अधूरा ही रहे।
दीप, अक्षत, रोली नहीं,
भावों के सूक्ष्म प्रतीक।
स्नेह का पुनर्जन्म,
हर आँगन में चिर अमर।
धूप की धुँधली गंध में,
विलीन प्रार्थना सौभाग्य की।
अव्यक्त प्रेम तरंगों में,
गृहस्थ जीवन का गूढ़ मर्म।
नभ में शशि उदित हुआ—
यह मिलन नहीं, ध्यान है।
चन्द्र को अर्घ्य देना,
शीतलता को समर्पण है।
जैसे गंगा शिव-जटा में ठहरती,
वैसे नारी पति में विश्रांत।
दर्शन के बाद बंधन टूटे—
प्रेम मौन में पूर्ण हुआ।
सजना-सँवरना नहीं,
यह आत्मा का अर्पण है।
श्रृंगार नहीं, साधना है,
जो सृष्टि को गति देती शक्ति।
मुख चन्द्र सा उज्ज्वल,
मन में निःस्वार्थ ज्वाला।
पत्नीत्व यहाँ तप है,
सौंदर्य और सत्य का संगम।
माँ! सौभाग्य दे या न दे,
बस यह विनय स्थिर रहे—
प्रेम अमृत बना रहे,
कामना निष्कपट, नित्य रहे।
शिव–शक्ति का रहस्य यही,
अर्धनारीश्वर का अनादि सत्य।
करवा चौथ उसी लय का उत्सव,
जहाँ मौन में प्रकट होता परम मिलन।
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