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महापर्वों का संगम: बिहार में आस्था और लोकतंत्र का उत्सव

महापर्वों का संगम: बिहार में आस्था और लोकतंत्र का उत्सव

सत्येन्द्र कुमार पाठक
बिहार की भूमि सदियों से आस्था, संस्कृति और सामुदायिक सद्भाव की प्रतीक रही है। यहाँ का हर महीना एक नई कहानी कहता है, लेकिन अक्टूबर और नवंबर का समय तो जैसे बिहार के हृदय की धड़कन बन जाता है। यह वह कालखंड है जब वायुमंडल में पवित्रता की सुगंध घुल जाती है, और धरती पर भक्ति, उल्लास और एकता के रंग बिखर जाते हैं। दशहरा की विजय गाथा, दीपावली का प्रकाश पर्व और लोक-आस्था का महापर्व छठ—ये सभी मिलकर बिहार की समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं। इस बार, यह पावन महीना एक अद्वितीय संगम का साक्षी बन रहा है। पारंपरिक पर्वों के साथ-साथ, लोकतंत्र का महायज्ञ—बिहार विधानसभा चुनाव—भी आयोजित हो रहा है। मतदान की तिथियाँ 6 नवंबर और 11 नवंबर, और परिणाम की तिथि 14 नवंबर का पर्वों के आसपास होना इसे और भी खास बना देता है। एक ओर हम सूर्य देव को अर्घ्य देकर प्रकृति की पवित्रता और समानता का पाठ पढ़ते हैं, तो दूसरी ओर हम संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग कर एक नई सरकार चुनने का कर्तव्य निभाते हैं। यह संगम सिर्फ एक संयोग नहीं, बल्कि बिहार के नागरिकों की दोहरी निष्ठा—आध्यात्मिक और लोकतांत्रिक है। लेख में उठाया गया प्रश्न हर बिहारी नागरिक के मन में कौंध सकता है: "इस बार बिहार के महापर्वों के बीच होने वाले विधानसभा चुनाव में, एक जागरूक नागरिक के रूप में आपका पहला कदम क्या होगा—त्योहारों की तैयारी या मतदान की भागीदारी?" लोकतंत्र सर्वोपरि: पर्व-त्योहार हमारी आस्था और संस्कृति को मजबूत करते हैं, जबकि मतदान हमारे भविष्य और अधिकार को सुरक्षित करता है। एक नागरिक के रूप में, अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करना हमारी पहली और सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। छठ पर्व की पवित्रता हमें सादगी और निष्ठा सिखाती है; उसी निष्ठा से हमें मतदान करना चाहिए। त्योहारों की तैयारी कई दिनों तक चलती है, लेकिन मतदान के लिए हमें केवल कुछ घंटे समर्पित करने होते हैं। एक सशक्त और जागरूक नागरिक त्योहारों के उत्साह को बनाए रखते हुए भी मतदान के लिए समय अवश्य निकालेगा। पर्व हमें एकता और सामुदायिक भावना सिखाते हैं, और मतदान इसी सामुदायिक शक्ति को सही नेतृत्व चुनने में लगाता है।
प्रवासी बंधुओं के लिए अवसर: चुनाव की तारीखों का पर्वों के करीब होना लाखों प्रवासी बिहारी भाइयों-बहनों के लिए एक सुनहरा अवसर है। वे त्योहारों की खुशी में शामिल होने के साथ-साथ, एक ही यात्रा में अपने मतदान का अधिकार भी निभा सकते हैं। इससे न सिर्फ मतदान प्रतिशत बढ़ेगा, बल्कि लोकतंत्र में उनकी भागीदारी भी सुनिश्चित होगी।
भविष्य की नींव: एक सही और निष्पक्ष मतदान ही राज्य के विकास और सामाजिक न्याय की नींव रखता है। हमारे द्वारा चुना गया नेतृत्व अगले पाँच वर्षों तक हमारे जीवन की दिशा तय करेगा। इसलिए, मिठाई की मिठास और दीयों के प्रकाश से पहले, बैलेट की ताकत को पहचानना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
बिहार का यह अनूठा संगम शांति, सौहार्द और उल्लास का संदेश देता है। आस्था के पर्व हों या लोकतंत्र का महापर्व, हमें एकता और सद्भाव को अपनी असली शक्ति बनाए रखना है। चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और त्योहारों की पवित्रता दोनों ही हमारे समाज के लिए आवश्यक हैं।एक जागरूक नागरिक के रूप में, हमारा संकल्प होना चाहिए कि हम पहले मतदान करें, फिर पर्व मनाएँ। आइए, हम इस अवसर को सफलता की मिसाल बनाएँ और दुनिया को दिखाएँ कि बिहार आस्था और लोकतंत्र दोनों के प्रति समान रूप से समर्पित है। इस महापर्वों के संगम को शांतिपूर्वक और हर्षोल्लास के साथ सफल बनाना ही बिहार की असली पहचान है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 कई मायनों में अद्वितीय और ऐतिहासिक होने जा रहा है। पर्वों के संगम के अलावा, यह चुनाव कई विशेष राजनीतिक, सामाजिक और तकनीकी पहलुओं के कारण महत्वपूर्ण है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से संबंधित दो चरण का मतदान: चुनाव आयोग ने मतदान दो चरणों में करने की घोषणा की है—6 नवंबर और 11 नवंबर को नतीजे की तारीख: मतगणना 14 नवंबर को होगी।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तिथियों को इस तरह निर्धारित किया गया है कि वे महापर्व छठ (जो आमतौर पर नवंबर के मध्य में होता है) से टकराए नहीं, जिससे प्रवासी लोग त्योहार और मतदान दोनों के लिए अपने घर लौट सकें। इससे मतदान प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है।
चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने 'जन सुराज' अभियान के माध्यम से शिक्षा, शराबबंदी और विकास जैसे मुद्दों पर जोर दिया है। उनका चुनावी मैदान में उतरना एक 'डार्क हॉर्स' साबित हो सकता है।
इस चुनाव में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 17 नए पहल लागू किए जा रहे हैं, जो बाद में देश के अन्य चुनावों में भी लागू हो सकते हैं: EVM में रंगीन फोटो: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर प्रत्याशियों के नाम के साथ उनकी रंगीन तस्वीर होगी, जिससे मतदाताओं को पहचान में आसानी होगी।बिहार के सभी 90 हज़ार पोलिंग बूथ पर वोटिंग प्रक्रिया की लाइव वेबकास्टिंग होगी, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी।।वन स्टॉप डिजिटल प्लेटफॉर्म भी लागू किया जाएगा। मोबाइल फोन की सुविधा: पहली बार, मतदाताओं को मतदान केंद्र से 100 मीटर की दूरी पर अपने मोबाइल फोन जमा करने की सुविधा मिलेगी, हालांकि बूथ के अंदर ले जाने की अनुमति नहीं होगी।
पोस्टल बैलेट का नया नियम: पोस्टल बैलेट की गिनती ईवीएम के अंतिम दो राउंड से पहले पूरी की जाएगी, जिससे परिणामों की घोषणा में अनावश्यक देरी न हो।।दियारा क्षेत्र में विशेष व्यवस्था: कटिहार, किशनगंज, अररिया जैसे जिलों के बाढ़ प्रभावित दियारा क्षेत्रों में लगभग 250 मतदान केंद्रों तक पहुँचने के लिए चुनाव आयोग नावों और घोड़ों का उपयोग करेगा, जो एक अनोखी चुनौती है।
नक्सल प्रभावित और दियारा क्षेत्रों में शांतिपूर्ण और निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा बलों की घोड़ों और नावों से पेट्रोलिंग की विशेष व्यवस्था की गई है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 केवल एक राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि विकास, सामाजिक न्याय, और लोकतंत्र के सुधार की एक कसौटी है, जिसे त्योहारों के उत्साह के बीच शांति और उल्लास के साथ सफल बनाना बिहार के नागरिकों की दोहरी जिम्मेदारी है।
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