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दीपावली : शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य

दीपावली : शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
विशाल भारतीय सांस्कृतिक वाङ्मय के समीक्षण से प्रतिफलित होता है कि दीपावली के लोकोत्सव के रुप में मनाये जाने की परम्परा अनुमानतः तीसरी शताब्दी से प्रचलित है। ध्यातव्य है,वात्स्यायन (कुछ विद्वानों के मत से 2री शताब्दी ई.सन् और कुछ विद्वानों के अनुसार 2री शताब्दी ई.पूर्व)ने उस काल में मनाए जाने वाले तीन लोकोत्सवों का निर्देश किया है--"यक्षरात्रिः।कौमुदीजागरः। सुवसन्तकः। (कामसूत्र--अधिकरण 1 ,अध्याय 4 ,सूत्र 27 )।" यहाँ दीपावली के लिए 'यक्षरात्रि 'शब्द का प्रयोग हुआ है। इसकी यशोधर-कृत 'जयमङ्गला' टीका में विशदन है--"यक्षरात्रिरिति सुखरात्रिः,यक्षाणां तत्र संनिधानात् तत्र प्रायशो लोकस्य द्यूतक्रीडा।"यक्षरात्रि,सुखरात्रि जिसमें यक्षों के सन्निधान
(Juxtaposition)से इस अवसर पर लोक में द्यूतक्रीडा (gambling )का चलन था। अधुना भी न्यूनाधिक प्रचलित है ही। पुराणों में केवल पद्मपुराण (उत्तर खण्ड 122 )एवं स्कन्दपुराण (कार्त्तिक मास माहात्म्य 9-11 ) में दीपावली का उल्लेख है। दीपावली मनाने की प्रथा 3री शताब्दी से मान्य है।
दीपावली में लक्ष्मी-पूजा की प्रथा है। यक्षरात्रि से लक्ष्मी का संबंध क्या है? 'यक्ष 'शब्द भी बड़ा विलक्षण है। "यक्ष्यते पूज्यते इति यक्ष् घञ् =यक्षः और यक्ष की रात्रि,यक्षरात्रि।' य' का संप्रसारण है 'ई'।ई लक्ष्मीमक्षणोतीति यक्षः। इस दृष्टि से 'लक्ष्मी-पूजन की रात्रि ' अर्थ निष्पन्न होता है।
दत्तात्रेयतन्त्र (पटल 12 ) में 14 यक्षिणियों का उल्लेख है--महायक्षिणी, सुरसुन्दरी, मनोहरी, कनकावती, कामेश्वरी,रतिकरी, पद्मिनी, नटी, अनुरागिणी, विशाला, चन्द्रिका , लक्ष्मी, शोभना और मदना।
यहाँ 12वीं संख्या में उल्लिखित यक्षिणी का नाम 'लक्ष्मी 'है। मेरी समझ से यही "लक्ष्मी "-नामा यक्षिणी का कालान्तर में वैष्णवी 'लक्ष्मी 'से तादात्म्य हो गया। और,इस प्रकार वैष्णव पद्धति से लक्ष्मी-पूजन का विधान समाम्नात हुआ।
दीपावली का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष तान्त्रिक है। तान्त्रिक परम्परा में 'काली-पूजा ' विहित है। इस परिप्रेक्ष्य में दुर्गासप्तशती के अंतर्गत तान्त्रोक्त रात्रिसूक्त का यह श्लोक(7) द्रष्टव्य है--
"प्रकृतिस्त्वं हि सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च दारुणा।।"यहाँ तीन रात्रियाँ उल्लिखित हैं--कालरात्रि,महारात्रि और मोहरात्रि। ये शक्ति के क्रमशः तामस,सात्त्विक एवं राजस रूप हैं। इन तीन शाक्त रात्रियों के ही लौकिक प्रतिरूप हैं--क्रमशः दीपावली की रात्रि,महाशिवरात्रि एवं कृष्णजन्माष्टमी की रात्रि।
यहाँ मैंने अंगुलि-निर्देशमात्र किया है। आशा है,यह सारभूत आलेख ज्ञानवर्धक होगा।
 "ओऽम् तत् सत् "
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