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कान्हा मंत्र मुग्ध,कनुप्रिया स्वाति सुगंध पर

कान्हा मंत्र मुग्ध,कनुप्रिया स्वाति सुगंध पर

कुमार महेन्द्र
नवल धवल कौमुदी प्रभा,
हृदय पटल प्रीति स्पंदन ।
पुलकित प्रफुल्लित आभा,
तृषा तृप्त आनंद मंडन ।
मस्त मलंग अठखेलियां,
प्रीत रीत दिव्य अनुबंध पर ।
कान्हा मंत्र मुग्ध,कनुप्रिया स्वाति सुगंध पर ।।


हर पल मिलन उमंग,
स्मृति पट मनोहर रूप ।
श्रृंगार अति मोहक सुंदर,
आकर्षण बिंब स्नेह अनूप ।
यौवन उभार मद अर्णव,
नयनन प्रणय धार स्वछंद पर ।
कान्हा मंत्र मुग्ध,कनुप्रिया स्वाति सुगंध पर ।।


सान्निध्य उल्लास मोद,
स्वप्न माला रूप जीवंत ।
चाल ढाल उत्साह आरेख ,
सौंदर्य अनुपमा अत्यंत ।
हिय प्रिय रसिक भामिनी,
मुस्कानी मनुहार सुबंध पर ।
कान्हा मंत्र मुग्ध,कनुप्रिया स्वाति सुगंध पर।।


अंतःकरण प्रेम सरोवर,
अभिव्यक्ति भाव अतरंग ।
शब्द माधुर्य राग अथाह,
चारु चंद्र चंचलता संग ।
निशि दिन रमणीक छटा,
तारुण्य रस सुप्रबंध पर ।
कान्हा मंत्र मुग्ध,कनुप्रिया स्वाति सुगंध पर ।।


कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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