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टूटते घर बिखरते वैवाहिक सम्बन्ध?

टूटते घर बिखरते वैवाहिक सम्बन्ध?

अ कीर्ति वर्द्धन
विवाह एक सामाजिक बंधन है। जिसका निर्वहन मर्यादा में रहकर किया जाना चाहिए। मर्यादा दोनों पक्षों की होती है। अगर सामाजिक बंधन टूटे तो अराजकता ही फैलेगी। जैसी लिव इन रिलेशनशिप को लीगल करने के बाद हो रहा है। न पुरुष खराब हैं और न ही स्त्री। घटनाओं में वृद्धि दोनों तरफ़ देखने को मिल रही है।
परन्तु शादी न करने का विचार भारतीय संस्कृति पर प्रहार हैं। पाश्चात्य सभ्यता तथा वाम चिंतन की तरह भारत को सांस्कृतिक रूप से धराशायी करने की योजना।
कुछ लोग कह रहे हैं कि भारत में 50% विवाहिता विधवा हैं जिनके पति उन्हें छोडकर अय्याशी करने निकल गये। पता नही 50% का आँकड़ा कहाँ से लाया गया या कपोल कल्पना है परन्तु इस देश की सामाजिक एकता का आधार ढाँचा आज भी वैवाहिक संस्था है। परिवारों का मिलन विस्तार व ज़िम्मेदारी का अहसास विवाह से ही होता है। 90% विवाह सफल हैं। अगर सफल न होते तो यूरोपियन देशों की तरह यहाँ भी बच्चे अनाथालयों में ही मिलते।
व्यक्तिगत किसी के अनुभव खराब हो सकते हैं। उसकी कुंठा समाज पर नहीं थोपी जा सकती अपितु आत्म विश्लेषण करने की ज़रूरत होती है। केवल कुंठित लोगों से समाज नहीं चलता। समाज समन्वय से चलता है। खुद के लिये नहीं दूसरों के लिये जीना सीखोगे तो कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती है।

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