झोफड़ी के द्वार भी दीपक जले, , देखो।।
डा रामकृष्ण मिश्रकिसी भी घर में अँधेरा टिक नहीं पाए
कहीं भी नैराश्य भरसक दिख नहीं पाए।
वितंङावादी कलह के स्रोत हों सूखे
धूप सूरज की कभी भी मत खले देखो।।
स्वार्थियों ने बहुत लूटा है सुना सब ने
हैंं कई परिवार टूटे सुना है सब ने।
त्यागवादी वृत्ति का जब ह्रास हो जाए
आग बिन कोई भरा घर मत जले, देखो।।
व्योम से उतरा नही होता कहीं अजगर
सभी भूमिज हैं सभी के पास है अवसर।
मानवोचित कृत्य का अधिकार होता है
कहीं ऊँचे से फिसल कर मत ढले देखो।। 88।।
डा रामकृष्ण, गया जी, बिहार
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