ॲंधेरे का दूसरा नाम
ॲंधेरे का ही दूसरा नाम रात है ,दर्शन का दूसरा नाम मुलाकात है ।
जितने भी साबित हो जाऍं दोषी ,
उनके जेल का नाम हवालात है ।।
दो दिल मिल जब एक हो जाऍं ,
उनको कहते हम आत्मसात हैं ।
वृक्षों को जो करता शोभायमान ,
उन्हीं को तो कहते हम पात हैं ।।
दूसरे को हम तब दिल यह देते ,
जब खा जाते प्रेम में ही मात हैं ।
बढ़ जाता जिससे मित्रता बंधुत्व ,
उसके साथ खाते हम भात हैं ।।
जिससे बढ़ जाता हमारा संबंध ,
वही तो कहलाता हमारा नात है ।
चल जाए जिससे मधुर संबंध ,
वही तो जीवन हेतु नव प्रात है ।।
जिनके तन से हम जन्म हैं लेते ,
वही तो कहलाती हमारी मात हैं ।
हम सब एक मातपिता के बेटे ,
हम ही कहलाते बहन भ्रात हैं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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