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प्रसिद्ध सूर्य मंदिर और सूर्यकुंड: आस्था, इतिहास और छठ महापर्व का केंद्र

प्रसिद्ध सूर्य मंदिर और सूर्यकुंड: आस्था, इतिहास और छठ महापर्व का केंद्र

सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारत का वह क्षेत्र जो प्राचीन काल में शाकद्वीप का हिस्सा माना जाता था, सनातन धर्म के सौर संप्रदाय के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यहाँ के विभिन्न जिलों में ऐसे कई सूर्य मंदिर (Sun Temples) और सूर्यकुंड (Sun Ponds) स्थित हैं जो न केवल ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि छठ महापर्व के दौरान सूर्योपासना के मुख्य केंद्र बन जाते हैं। यह पर्व सूर्य देवता के प्रति अटूट आस्था और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है, और इन पवित्र स्थलों पर छठ के समय लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता है।बिहार के विभिन्न जिलों में कई ऐसे सूर्य मंदिर हैं जिनकी अपनी विशिष्ट पौराणिक कथाएँ, वास्तुकला और धार्मिक मान्यताएँ हैं। औरंगाबाद: देव सूर्य मंदिर (देवार्क सूर्य मंदिर) : देव सूर्य मंदिर बिहार का सबसे प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है, जिसे देवार्क सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता ह देश का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर है। इसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया था।मंदिर के पास स्थित सूर्यकुंड छठ पूजा का मुख्य केंद्र है, जहाँ लाखों श्रद्धालु अर्घ्य देने आते हैं। उमगा पर्वत पर स्थित सूर्य मंदिर पूर्वाभिमुख है, और देवकुंड में भी एक सूर्यकुंड है।पटना जिले के दुल्हिनबाजार प्रखंड में स्थित उलार सूर्य मंदिर देश के 12 प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है।यह मंदिर काले पत्थर से निर्मित है और अपनी पौराणिकता और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए विख्यात है।पंडारक में पुण्यार्क सूर्यमंदिर है। नालंदा जिले में दो प्रमुख सूर्य मंदिर हैं। औंगारी सूर्य मंदिर: इस मंदिर के प्रांगण में स्थित सूर्यकुंड को त्वचा रोगों से मुक्ति का सर्वोत्तम साधन माना जाता है। छठ पर्व के दौरान यहाँ बड़ी भीड़ रहती है। बड़गांव सूर्य मंदिर: यह अपनी प्राचीनता और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है।गया: दक्षिणायन सूर्य मंदिर : दक्षिणायन सूर्य मंदिर गया शहर में विष्णुपद मंदिर से उत्तर और सूर्यकुंड से पश्चिम में स्थित है।: यहाँ की सूर्य प्रतिमा सतयुग कालीन मानी जाती है। फल्गु नदी के किनारे विरंचि नारायण सूर्य मंदिर के गर्भगृह में भगवान सूर्य मूर्ति है। सूर्यकुंड: मंदिर में बने कुंड की मान्यता बहुत अधिक है, और छठ के मौके पर यहाँ मेला लगता है। जहानाबाद: काको और दक्षिणी सूर्य मंदिर - जहानाबाद जिला भी सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध रहा है। काको सूर्य मंदिर (काको पनिहास): यह एक विख्यात और प्राचीन केंद्र है। मंदिर के समीप एक विशाल पनिहास (तालाब) है, जहाँ छठ पूजा के लिए हजारों श्रद्धालु अर्घ्य देते हैं। यहाँ भगवान विष्णु की प्राचीन मूर्ति भी स्थापित है।दक्षिणी सूर्य मंदिर: जहानाबाद प्रखंड क्षेत्र के दक्षिणी में स्थित यह मंदिर मनोकामनाएँ पूरी होने की मान्यता के लिए प्रसिद्ध है।सूर्यान्क गिरि: बराबर पर्वत समूह क्षेत्र में स्थित सूर्यान्क गिरि का उल्लेख पौराणिक कथाओं में मिलता है, जो धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। जहानाबाद ठाकुरवाड़ी (दरधा-जमुना संगम तट): यह सीधे सूर्य मंदिर नहीं है, लेकिन छठ महापर्व के दौरान अर्घ्य देने के लिए यह एक मुख्य घाट है। अरवल जिले में भी सूर्योपासना के स्थल हैं।बेलसार सूर्य मंदिर: कलेर प्रखंड में सोन नदी के तट पर स्थित यह मंदिर मनोकामना मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।मदसर्वं (मधुश्रवा) सूर्य मंदिर: मधुश्रवा नामक स्थान पर स्थित मधेश्वर नाथ मंदिर के पास के पोखरा (कुंड) में स्नान करने से सभी पाप नष्ट होने की मान्यता है। कुछ स्रोतों में इस स्थान का उल्लेख सूर्य मंदिर के रूप में भी मिलता है। अरवल जिले के सोन नद , पुनपुन नदी में अर्घ्य दिया जाता है । करपी में रतन कुंड और सूर्यमंदिर , पन्तित , किंजर में सूर्यमंदिर पुनपुन नदी के किनारे है। गंगा , पुनपुन , सोन , फल्गु , नारायणी नदियों , सरोवरों के विभिन्न सूर्य घाट0न पर सूर्योपासना , छठ ब्रत किए जाते है । प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल केवम चैत्र शुक्ल पक्ष चौथ से सप्तमी तक सूर्योपासना में संलग्न रहते है ।
नवादा जिले के नारदीगंज प्रखंड के हंडिया गाँव में स्थित यह मंदिर विश्व के पौराणिक व ऐतिहासिक सूर्य मंदिरों में शुमार है और इसे द्वापर कालीन बताया जाता है।कुंड की मान्यता: मंदिर के समीप स्थित तालाब के पानी में स्नान करने से कुष्ठ रोग दूर होने की मान्यता है। प्रत्येक रविवार को यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं।8. भोजपुर (आरा): बेलाउर और भकुरा सूर्य मंदिर : भोजपुर जिले में बेलाउर सूर्य मंदिर (बेलार्क): यह एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है, जिसकी विशेषता है कि यह मंदिर भी पश्चिमाभिमुख है, जबकि अधिकांश मंदिर पूर्वाभिमुख होते हैं।सूर्यकुंड: मंदिर विशाल भैरवानंद तालाब (सूर्यकुंड) के बीचोबीच निर्मित है, जहाँ छठ पूजा के दौरान बिहार, यूपी और झारखंड से भी श्रद्धालु आते हैं। यहाँ छठ अर्घ्य के दौरान सिक्का बांटने की अनूठी परंपरा भी है।
भकुरा सूर्य मंदिर: यह मंदिर तरारी प्रखंड के भकुरा गांव में एक तालाब के बीच में स्थित है। यहाँ 14वीं सदी या उससे भी पहले की सूर्य भगवान की प्रतिमाएँ स्थापित होने की मान्यता है।
9. रोहतास:देवडिही सूर्य मंदिर: चेनारी प्रखंड में स्थित यह अतिप्राचीन सौर केंद्र परवर्ती गुप्त काल में निर्मित हुआ था। मंदिर के पूर्वी भाग में एक विशाल सूर्य कुंड है।देव मार्कंडेय सूर्य केंद्र: काराकाट प्रखंड में स्थित यह स्थान पहले शैव केंद्र था, लेकिन बाद में यहाँ सूर्य, विष्णु, दुर्गा आदि की प्रतिमाएँ स्थापित हुईं। यहाँ भी छठ के अवसर पर भारी मेला लगता है।.बक्सर जिले के राजपुर प्रखंड स्थित देवढ़िया गाँव में लगभग 1400 साल पुराना एक सूर्य मंदिर है, जिसे सम्राट हर्षवर्धन (606-647 ई.) के समय का माना जाता है। यहाँ स्थापित सूर्य प्रतिमाओं की तुलना ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर की प्रतिमाओं से की जाती है। सारण जिले के गड़खा प्रखंड में स्थित यह मंदिर उत्तर बिहार के प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में गिना जाता है।गंडकी तट कैलाश आश्रम सूर्य मंदिर: गंडकी नदी के तट पर स्थित इस मंदिर में सात विशालकाय घोड़ों से सुसज्जित रथ पर विराजमान सूर्य देव की भव्य प्रतिमा स्थापित है। 12. मधुबनी: झंझारपुर अनुमंडल में स्थित इस प्राचीन सूर्य मंदिर के परिसर में छठ पूजा के लिए एक पोखरा (तालाब/कुंड) है
बिहार के अन्य जिलों में भी सूर्य उपासना के केंद्र मौजूद हैं:मुजफ्फरपुर: चतुर्भुज मंदिर परिसर में सूर्य मंदिर और बूढ़ी गंडक व नारायणी घाट छठ पूजा के प्रमुख स्थल हैं।भागलपुर: सूर्य देव नारायण मंदिर (सखीचंद घाट), जो 100 साल से अधिक पुराना है।मुंगेर: हवेली खड़गपुर में सूर्य मंदिर।खगड़िया: कन्दाहा (अलौली) का सूर्य मंदिर, जो पड़ोसी बेगूसराय के भक्तों के लिए भी महत्वपूर्ण है।पूर्णिया: आदित्यधाम सूर्य मंदिर (वीवीआइटी कॉलेज परिसर, मरंगा) एक प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है।कटिहार: बलरामपुर में एक प्राचीन सूर्य मंदिर है।कैमूर (भभुआ): गोडसरा सूर्य मंदिर और मुंडेश्वरी मंदिर (जिसके पंचमुखी शिवलिंग का रंग सूर्य की स्थिति से बदलने की मान्यता है)।
भारत ही नहीं, बल्कि विश्व की कई प्राचीन सभ्यताओं में सूर्योपासना प्रचलित रही है।इराक (मेसोपोटामिया): सूर्य देवता शामश की पूजा।मिस्र: प्राचीन मिस्र में सूर्य देवता रा की पूजा, जो जीवन और प्रकाश के देवता माने जाते थे।जापान: सूर्य की पूजा को अमातेरासु कहा जाता है, जो शाही परिवार की उत्पत्ति के रूप में मानी जाती है।चीन: यहाँ सूर्य की पूजा को ताईयांग कहा जाता है।
, भारत में ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर, गुजरात का मोढेरा सूर्य मंदिर, सहरसा का कंदाहा सूर्य मंदिर (जो मेष राशि के आधार पर बना है), और झारखंड का बुंडू सूर्य मंदिर भी सूर्योपासना के महान केंद्र हैं ।
बिहार के ये सूर्य मंदिर और सूर्यकुंड केवल ईंट-पत्थर की संरचनाएं नहीं हैं, बल्कि ये अटूट आस्था, प्राचीन इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के जीवंत प्रमाण हैं। विशेष रूप से छठ महापर्व के दौरान, इन स्थलों का महत्व चरम पर होता है। छठ पर्व के दौरान, सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा इन कुंडों और नदियों के किनारे होती है, जहाँ अस्ताचलगामी (डूबते) और उगते (उदय होते) सूर्य की आराधना की जाती है। यह पर्व जीवन, ऊर्जा और प्रकृति के चक्र के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त करता है, और बिहार के ये पौराणिक स्थल इस महान परंपरा को सदियों से पोषित करते आ रहे हैं। ये स्थान न केवल बिहार के धार्मिक मानचित्र को परिभाषित करते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति में सूर्य देवता की केंद्रीय भूमिका को भी रेखांकित करते हैं।
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