खड़ना : आस्था का उजियारा
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"सूरज ढले, संध्या सजे, अरघ्य की तैयारी,
भक्ति में डूबी मइया के गीतों की प्यारी क्यारी।
खड़ना का दिन आया, व्रतधारी मुस्काए,
निर्जला उपवास की राह, श्रद्धा से अपनाए।
गुड़-चावल की महक उठे, तुलसी डाले जल,
सच्चे मन से माँ को भजे, हर जन सरल अचल।
संयम, सेवा, श्रद्धा का, यह पर्व निराला है,
छठ मइया का स्नेह भरा यह दिन निराला है।
भोर के अरुण संग फिर, घाटों पर भीड़ उमड़े,
दीयों की ज्योति संग, मन के दीप भी चमके।
खड़ना की इस पावन बेला में, माँ वरदान दे जाए,
हर घर में सुख-शांति, हर मन में विश्वास जगाए।
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