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सौर सम्प्रदाय: उद्भव, विकास और छठ पूजा प्रकृति संस्कृति

सौर सम्प्रदाय: उद्भव, विकास और छठ पूजा प्रकृति संस्कृति

सत्येन्द्र कुमार पाठक
सौर सम्प्रदाय प्राचीन काल में सूर्य देव की पूजा करने वाले लोगों का एक समूह था, जिसका उद्भव और विकास भारत में हुआ। यह सम्प्रदाय केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसने भारत की सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक परंपराओं को भी गहराई से प्रभावित किया। सूर्य को जीवनदाता और ऊर्जा का स्रोत मानने वाली यह उपासना पद्धति, जिसकी जड़ें वैदिक काल तक फैली हैं, आज भी भारतीय जनमानस में जीवंत है।
शाकद्वीप: यह एक प्राचीन क्षेत्र है जिसका अनुमान वर्तमान मध्य एशिया (जैसे कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान) के आसपास लगाया जाता है, हालाँकि इसकी सटीक भौगोलिक स्थिति पर विद्वानों में मतभेद है। पुराणों के अनुसार, सृष्टि के स्वायम्भुव मन्वन्तर काल में प्रियव्रत द्वारा पृथ्वी को सप्त द्वीपों में विभक्त किया गया था, जिनमें से एक शाकद्वीप था।।मग ब्राह्मण: शाकद्वीपीय ब्राह्मण यह एक प्राचीन ब्राह्मण समुदाय है जो विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा के लिए प्रसिद्ध था। माना जाता है कि मग ब्राह्मणों ने ही सौर सम्प्रदाय को शाकद्वीप से भारत में प्रसारित किया था, जिससे भारत में सूर्योपासना को एक नया आयाम मिला। मग ब्राह्मणों के प्रभाव से शाकद्वीप में मग (ब्राह्मण) द्वारा सौर सम्प्रदाय का प्रचलन था, और इसी कारण इस क्षेत्र को बाद में मगध और कीकट प्रदेश से जोड़ा गया। अंग वंशीय राजा पृथु के साम्राज्य में राजा मागध ने मगध साम्राज्य का पुनर्निर्माण किया, जहाँ ब्राह्मण (वर्ण मग), क्षत्रिय (मागध), वैश्य (मानस) और शूद्र (मंदग) की वर्ण व्यवस्था प्रचलित थी। पुराणों और प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, शाकद्वीप का क्षेत्र वर्तमान बिहार (मगध, मिथिला, बज्जि , अंग), उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, और ओडिशा (उत्कल) , नेपाल देश के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था, जो इस सम्प्रदाय के व्यापक भौगोलिक प्रभाव को दर्शाता है। पुराणों में शाकद्वीप की विशिष्ट भौगोलिक संरचना और पवित्र नदियों का उल्लेख मिलता है, जो इस क्षेत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं। शाकद्वीप के स्वामी भव्य के सात पुत्रों ने अपने नाम पर विभिन्न देशों की स्थापना की और पवित्र पर्वतों का निर्माण किया: जलद जलद देश उदयगिरि मध्य प्रदेश और ओडिशा की उदयगिरि गुफाएं , कुमार कुमार देश जलधार गिरि जयपुर, राजस्थान का 'जलधारा' स्थान , सुकुमार सुकुमार देश रैवतक गिरि गुजरात में गिरनार पर्वत (जैन तीर्थस्थल) , मनीरक मनीरक देश श्याम गिरि - , कुसूमोद कुसूमोद देश अम्भो गिरि - , गोदकी गोदाकि देश अम्भो गिरि , राजा महद्रुम का महद्रुम देश केशरी गिरि झारखंड के गुमला जिले में अंजनी (अस्पष्ट)
शाकद्वीप में सात पवित्र नदियाँ बहती थीं, जो जल संसाधन और धार्मिक महत्व का केंद्र थीं। इन नदियों के वर्तमान संदर्भ में सुकुमारी , कुमारी , नलिनी (वर्तमान में निरंजना/लिलांजन नदी) ,रेणुका (महानदी की सहायक नदी) , इक्षु , धेनुका (वर्तमान में पुनपुन नदी) , गभस्ति ( फल्गु नदी) है । भारतीय संस्कृति में सौर सम्प्रदाय की परंपरा विभिन्न पर्वों और स्तोत्रों के माध्यम से आज भी जीवित है। छठ पर्व सूर्य देव की उपासना का सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय त्योहार है, जिसका विशेष महत्व बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में है। पर्व का उल्लेख वैदिक काल में मिलता है, जहाँ ऋग्वेद में सूर्य देव की उपासना का वर्णन ह पुराणों के अनुसार, महाभारत के युद्ध के बाद द्रौपदी ने अपने पुत्र के लिए सूर्य देव की उपासना की थी, जिससे उसका पुत्र जीवित हो गया था। यह पर्व सूर्य देव की कृपा की कामना, प्रकृति के प्रति आभार और लोगों को एकजुट करने का अवसर प्रदान करता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के रचयिता अगस्त्य ऋषि हैं। उन्होंने भगवान श्री राम को लंका के युद्ध में रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए इसका उपदेश दिया था। उवाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में आदित्य हृदय वर्णित है। आदित्य हृदय पाठ शत्रुओं पर विजय, सुख-सौभाग्य और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति के लिए किया जाता है।सनातन धर्म की सौर संस्कृति में सूर्य को 12 रूपों या अवतारों में पूजा जाता है, जिन्हें द्वादश आदित्य कहा जाता है। ये प्रकृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं: इन्द्र: देवताओं के राजा, शत्रुओं का दमन करने वाले। धाता: प्रजापति, जन समुदाय की सृष्टि करने वाले। पर्जन्य: मेघों में निवास, वर्षा करने वाले।त्वष्टा: वनस्पति में निवास, पेड़-पौधों में व्याप्त।पूषा: अन्न में निवास, समस्त धान्यों में व्याप्त।अर्यमा: वायु रूप में प्राणशक्ति का संचार करने वाले। भग: सूर्य का एक रूप। विवस्वान: अग्नि देव, कृषि और फलों का पाचन करने वाले। विष्णु: संसार के समस्त कष्टों से मुक्ति दिलाने वाले। अंशुमान: वायु रूप में प्राण तत्व बनकर देह में विराजमान। वरुण: जल तत्व का प्रतीक, समस्त प्राणियों के जीवन का आधार। मित्र: विश्व के कल्याण हेतु तपस्या करने वाले है।सौर सम्प्रदाय का उद्भव और विकास भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति की गहराई को दर्शाता है। शाकद्वीप से आए मग ब्राह्मणों ने इस परंपरा को भारत में मजबूत किया, और इस सम्प्रदाय का भौगोलिक विस्तार वर्तमान पूर्वी भारत के विशाल क्षेत्रों तक फैला। छठ पर्व और आदित्यहृदय स्तोत्र जैसी परंपराएँ आज भी सूर्योपासना के महत्व को बनाए हुए हैं, जो हमें प्रकृति के प्रति आभार और आध्यात्मिक शक्ति का संदेश देती हैं। सूर्य देव की पूजा भारतीय जनमानस में जीवन, ऊर्जा और प्रकाश के केंद्रीय प्रतीक के रूप में सदियों से विद्यमान है।
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