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कार्तिक मास: दामोदर की भक्ति और मोक्ष का पुण्य पर्व

कार्तिक मास: दामोदर की भक्ति और मोक्ष का पुण्य पर्व

सत्येन्द्र कुमार पाठक
पुराणों , वेदों , सनातन धर्म संस्कृति ज्योतिष पंचांग के आठवें महीने, जिसे 'कार्तिक मास' कहा जाता है, का भारतीय संस्कृति और अध्यात्म में एक अद्वितीय और परम पवित्र स्थान है। यह केवल एक महीना नहीं, बल्कि व्रत, संयम, भक्ति, और मोक्ष की साधना का एक महासंगम है। कार्तिक मास को वर्ष का सर्वाधिक पवित्र और पुण्यदायी समय माना गया है, जिसकी महिमा वेदों और पुराणों में विस्तृत रूप से गाई गई है। स्कंद पुराण में तो यहाँ तक कहा गया है कि "जैसे सतयुग के समान कोई युग नहीं, गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, वैसे ही कार्तिक के समान कोई मास नहीं है।" यह कथन इस माह के अतुलनीय महत्व को स्थापित करता है। कार्तिक मास के नामकरण के पीछे भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र, देवताओं के सेनापति, कार्तिकेय (स्कंद, मुरुगन) का नाम है। हालाँकि, इस माह का धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र बिंदु मुख्य रूप से भगवान विष्णु और उनके कृष्ण स्वरूप की पूजा-अर्चना है। इस पवित्र मास को एक और अत्यंत महत्वपूर्ण नाम से जाना जाता है – दामोदर मास। 'दामोदर' नाम भगवान श्रीकृष्ण का एक लाडला नाम है, जो दो शब्दों से बना है: 'दाम' (अर्थात रस्सी) और 'उदर' (अर्थात पेट)। इसकी पौराणिक कथा माता यशोदा से जुड़ी है, जिन्होंने बालकृष्ण की शरारतों से तंग आकर उन्हें रस्सी से ऊखल से बाँध दिया था। इस प्रेममयी बंधन के कारण ही श्रीकृष्ण को 'दामोदर' कहा गया। कार्तिक मास को दामोदर मास के रूप में मनाना यह दर्शाता है कि यह महीना भगवान विष्णु के प्रति वात्सल्य, प्रेम और अनन्य भक्ति का प्रतीक है।
कार्तिक मास वह अवधि है जब भगवान विष्णु अपनी चार माह की योगनिद्रा (शयनावस्था) से जागृत होते हैं। इस निद्रा का समापन 'देवोत्थानी या प्रबोधिनी एकादशी' पर होता है। भगवान के जागृत होने के साथ ही सभी तरह के मांगलिक कार्य ( विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि) पुनः प्रारंभ हो जाते हैं, जो इस माह को और भी शुभकारी बना देता है।
कार्तिक मास को मोक्ष और पुण्य की प्राप्ति का महीना माना जाता है। सनातन धर्म में इस दौरान किए गए भक्तिमय कर्मों, उपवासों और दान-पुण्य का फल कई गुना अधिक मिलता है। यह महीना आत्म-शुद्धि, इंद्रिय-संयम और सात्विक जीवन शैली अपनाने का प्रेरणास्रोत है। कार्तिक मास का सबसे प्रमुख नियम है सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, घाट या जलस्रोत में स्नान करना, जिसे 'कार्तिक स्नान' कहते हैं। माना जाता है कि इस दौरान गंगा, यमुना, या अन्य किसी भी नदी में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और अपार पुण्य की प्राप्ति होती है।तुलसी पूजा और परिक्रमा: तुलसी (वृंदा) को भगवान विष्णु की प्रियतमा और अत्यंत पवित्र माना जाता है। कार्तिक मास में प्रतिदिन तुलसी की पूजा करना, उन्हें जल अर्पित करना और उनकी परिक्रमा करना अनिवार्य माना गया है। कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थानी एकादशी) के दिन तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है, जिसमें शालिग्राम (भगवान विष्णु का पाषाण स्वरूप) से तुलसी का विवाह संपन्न कराया जाता है, जो सृष्टि के पुनः सञ्चालन का प्रतीक है। दीपदान: इस माह में दीपदान का विशेष महत्व है। मंदिरों में, नदी के घाटों पर, तुलसी के पौधे के पास और घरों में दीपक जलाए जाते हैं। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय, अज्ञान पर ज्ञान की विजय और भगवान विष्णु के प्रति समर्पण का प्रतीक है। गणिका की कथा, जिसमें एक गणिका ने ऋषि के कहने पर कार्तिक मास में स्नान और दीपदान किया और मोक्ष को प्राप्त कर बैकुंठ चली गई, दीपदान के इस असाधारण पुण्य को प्रमाणित करती है।
सात्विक जीवन में भक्त इस पूरे माह सात्विक भोजन करते हैं और तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांसाहार आदि) से सख्ती से परहेज करते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन और भूमि पर शयन भी इस माह के प्रमुख व्रतों में शामिल हैं।
कार्तिक मास पर्वों और उत्सवों का एक ऐसा समूह है, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी विविधता और उल्लास के साथ मनाया जाता है कृष्ण पक्ष चतुर्थी करवा चौथ सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और मंगल के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।कृष्ण पक्ष त्रयोदशी धनतेरस भगवान धनवंतरी की पूजा और नए बर्तन या सोने-चाँदी की वस्तुएँ खरीदने का शुभ दिन। कृष्ण पक्ष अमावस्या दीपावली माता लक्ष्मी का प्राकट्योत्सव, भगवान राम के अयोध्या लौटने और बुराई पर अच्छाई की विजय का महापर्व।शुक्ल पक्ष प्रतिपदा गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्र के अहंकार को भंग करने और गोवर्धन पर्वत को उठाने का उत्सव।शुक्ल पक्ष द्वितीया यम द्वितीया/भाई दूज यम और उनकी बहन यमुना की कथा से जुड़ा यह पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है।शुक्ल पक्ष षष्ठी छठ पूजा मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला यह पर्व सूर्योपासना, जलोत्सव और प्रकृति पूजन के लिए पवित्र है।शुक्ल पक्ष अष्टमी गोपाष्टमी वह दिन जब श्रीकृष्ण ने पहली बार गाय चराई थी। गौ-पूजन का विशेष महत्व।
शुक्ल पक्ष नवमी अक्षय नवमी आँवला (धात्री) के वृक्ष की पूजा, जिसे भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। इसे 'अक्षय' (कभी न घटने वाला) पुण्य प्रदान करने वाला माना जाता है। शुक्ल पक्ष एकादशी प्रबोधिनी / देवोत्थानी एकादशी भगवान विष्णु का योगनिद्रा से जागृत होना और तुलसी विवाह का आयोजन।
शुक्ल पक्ष पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा (त्रिपुरी पूर्णिमा) इस दिन का धार्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व सर्वाधिक है। कार्तिक मास का समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है, जिसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' और 'गंगोत्सव' भी कहते हैं। इस दिन तीन प्रमुख घटनाएँ हुई थीं:मत्स्यावतार: भगवान विष्णु ने इसी दिन अपने मत्स्यावतार (मछली अवतार) में प्रकट होकर सृष्टि को प्रलय से बचाया था।त्रिपुरारी शिव: भगवान शिव ने इसी दिन 'त्रिपुर' नामक शक्तिशाली राक्षस का वध किया था, जिसके बाद वे 'त्रिपुरारी' कहलाए। इसलिए इस दिन शिव मंदिरों में दीपदान का विशेष विधान है। गुरु नानक जयंती: सिख धर्म में इसी दिन उनके प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व (जन्मोत्सव) बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है, जो इस तिथि के महत्व को सार्वभौमिक बनाता है।
इस दिन किया गया स्नान, दान और दीपदान महापुण्यदायी माना जाता है। इस दिन मंदिरों, विशेषकर काशी के पंचगंगा घाट पर श्रीहरि स्वरूप बिंदु माधव के दर्शन का विशेष महत्व है। कार्तिक मास के महत्व को रुक्मिणी की कथा से समझा जा सकता है। पुराणों संहिताओं के अनुसार, पूर्वजन्म में एक विधवा ब्राह्मण महिला ने कार्तिक मास में नियमपूर्वक गंगा स्नान किया और तुलसी की पूजा की थी। इस पुण्य के फलस्वरूप, अगले जन्म में उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी (मुख्य रानी) रुक्मिणी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह कथा दर्शाती है कि सच्चे मन से किया गया कार्तिक मास का व्रत जीवन के सबसे बड़े लक्ष्य – ईश्वर से संबंध – को सिद्ध करता है। कार्तिक माह भगवान सूर्योपासना (छठ), माता लक्ष्मी का प्राकट्योत्सव, भगवान सूर्य के 12 अवतारों का प्राकट्योत्सव, और सतयुग के आगमन जैसी कई महत्वपूर्ण पौराणिक घटनाएँ जुड़ी हैं, जो इसे 'सबसे पवित्र महीना' बनाती हैं। कार्तिक मास, जिसे दामोदर मास भी कहा जाता है, केवल हिंदू कैलेंडर का आठवाँ महीना नहीं है, बल्कि यह सनातन संस्कृति में आत्मा के उन्नयन और ईश्वरीय प्रेम की अभिव्यक्ति का एक वार्षिक महोत्सव है। यह मास हमें स्मरण कराता है कि जीवन की सार्थकता भौतिक सुखों में नहीं, बल्कि भक्ति, आत्म-संयम और परोपकार में निहित है। भक्त जल में स्नान कर पवित्रता का वरण करते हैं, तुलसी को पूजकर प्रकृति और धर्म के समन्वय को साधते हैं, और दीपदान कर अपने जीवन के अंधकार को दूर करते हैं। यह मास कार्तिकेय, दामोदर, शिव और गुरु नानक देव जी के आदर्शों को एक सूत्र में पिरोता है, जो इसे मोक्ष, भक्ति और परमार्थ का अद्वितीय पर्व बनाता है। कार्तिक मास वस्तुतः मनुष्य को भगवद्प्रेम के उस शिखर तक पहुँचाता है, जहाँ से जीवन और मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और केवल आनंदमय बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
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