राम जैसा बनना — आज के जमाने में....
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"दौड़ रहे सब नाम के पीछे,
रैंक, रिव्यू, इनाम के पीछे,
हर कोई उलझा सपनों में,
झूठे से आराम के पीछे।
रैंक, रिव्यू, तमग़े, लाइक,
इन सब में मन खो जाता,
थोड़ी जीत पे फूल उठे,
हार मिलत ही रो जाता।
सफल हुआ तो सिर चढ़ जाता,
हार का नाम न सह पाता,
थोड़ी धूप में मुस्काता है,
छाया आए तो मुरझाता।
दुनिया दौड़े, लक्ष्य, विकास,
पद, धन और नाम के पीछे,
हर कोई उलझा कर्म-जाल में,
छोटे-बड़े हर काम के पीछे।
सोचो ज़रा वो राम हमारे,
त्याग दिए जो राज-काज सारे,
एक पल तिलक सजा था सिर पे,
दूजे पल वनवास गुज़ारे।
ना क्रोध किया, ना हृदय दुखाया,
भाग्य को दोष न दे पाया,
शांत मुख और दृढ़ था मन में,
धर्म निभाने का संकल्प पाया।
क्या हम वैसे बन सकते हैं,
जब जीवन का रंग बदल जाए?
ना हर्ष में चंचल हो मन,
ना दुख में कोई धैर्य गँवाए।
राम सिखाते सहज उपदेश,
ना ऊँच-नीच, ना राग, द्वेष,
जीवन के हर रंग को साधो,
सुख-दुख दोनों बाँधो शेष।
कहना “राम राम” सबको सहज,
पर जीना “राम” कठिन धरम,
तप, संयम, शांति, करुणा,
प्रेम, यही सच्चा जीवन-वरम।
जब भी भाग्य पलट कर बोले,
मन ना डोले, धीरज तोले,
हर संकट बस यही पुकारे,
अब राम-सा बन,जीवन खोले।
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