हे त्रेतायुग के राम
सीमित थे जब जन जीवन ,सीमित राक्षस दैत्य दानव ।
सत्य जहाॅं था बारह आने ,
तब भयभीत उतने मानव ।।
आज कलियुग भीषण रूप ,
भीषण रूप में है आबादी ।
भीषण कंस बालि रावण ,
बहु बेटी की छिनी आजादी ।।
सच्चे साधु संत अछूते नहीं ,
पर ढोंगी बाबा बहुत हुए हैं ।
मिट रहे सच्चे संत पहचान ,
ढोंगी बाबा ही प्रभावी हुए हैं ।।
प्रभावी थे सतयुग से द्वापर ,
परशु राम तुम्हीं कहलाए थे ।
त्रेतायुग में राम और परशु ,
आपस में ही क्यों टकराए थे ।।
इसलिए हे प्रभु त्रेता के राम ,
कब होगा कलियुग का शाम ।
कबतक जन जन होंगे सुरक्षित ,
कबतक लेगा कलि अविराम ।।
घोर कलियुग छाया हुआ यह ,
कोटि रावण बालि कंस हुए हैं ।
त्रेता द्वापर में जितने भी हुए थे ,
लाखगुना आज अधिक हुए हैं ।।
एक रावण को मारकर तुमने ,
शान से बैठा है सिंहासन पर ।
रेंग रहे हैं तुम्हें जूॅं भी भी नहीं ,
ऋषि बैठे शीर्षासन पद्मासन ।।
हो रहीं बहुत नृशंस हत्याऍं ,
कब आओगे कलियुग में राम ।
कब दुर्जन सारे धराशाई होंगे ,
कब लेगा ये कलियुग विश्राम ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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