Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

हे त्रेतायुग के राम

हे त्रेतायुग के राम

सीमित थे जब जन जीवन ,
सीमित राक्षस दैत्य दानव ।
सत्य जहाॅं था बारह आने ,
तब भयभीत उतने मानव ।।
आज कलियुग भीषण रूप ,
भीषण रूप में है आबादी ।
भीषण कंस बालि रावण ,
बहु बेटी की छिनी आजादी ।।
सच्चे साधु संत अछूते नहीं ,
पर ढोंगी बाबा बहुत हुए हैं ।
मिट रहे सच्चे संत पहचान ,
ढोंगी बाबा ही प्रभावी हुए हैं ।।
प्रभावी थे सतयुग से द्वापर ,
परशु राम तुम्हीं कहलाए थे ।
त्रेतायुग में राम और परशु ,
आपस में ही क्यों टकराए थे ।।
इसलिए हे प्रभु त्रेता के राम ,
कब होगा कलियुग का शाम ।
कबतक जन जन होंगे सुरक्षित ,
कबतक लेगा कलि अविराम ।।
घोर कलियुग छाया हुआ यह ,
कोटि रावण बालि कंस हुए हैं ।
त्रेता द्वापर में जितने भी हुए थे ,
लाखगुना आज अधिक हुए हैं ।।
एक रावण को मारकर तुमने ,
शान से बैठा है सिंहासन पर ।
रेंग रहे हैं तुम्हें जूॅं भी भी नहीं ,
ऋषि बैठे शीर्षासन पद्मासन ।।
हो रहीं बहुत नृशंस हत्याऍं ,
कब आओगे कलियुग में राम ।
कब दुर्जन सारे धराशाई होंगे ,
कब लेगा ये कलियुग विश्राम ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ