छठ महापर्व, संयुक्त परिवार,आनलाइन खरीदारी,एवं गूगल सर्च।
जय प्रकाश कुवंर
आज छठ महापर्व का तीसरा दिन है। आज शाम के समय डूबते सूरज को छठ ब्रती अर्घ्य देंगे। आज कल ज्यादातर लोग शहर में अपने मकान के छत पर ही छोटा सा जलकुंड बनाकर वहीं छठ पूजा करते हैं और अर्घ्य देते हैं। हालांकि गाँव देहात में अभी भी ब्रती नदी, पोखर अथवा कुएं के किनारे ही छठ पूजा करते हैं।
बिनोद अपनी पत्नी सबिता और दश साल के इकलौता बेटा रतन के साथ गाँव के संयुक्त परिवार से अलग होकर शहर में एक भाड़े के मकान में रहता है। वह काम के सिलसिले में कुछ दिन से बाहर गया हुआ है। घर में सबिता और रतन अकेले हैं। स्कूल से फूर्सत के बाद रतन हमेशा मोबाईल पर व्यस्त रहता है। उसकी माँ सबिता भी ज्यादातर टीभी और मोबाईल में ही लगी रहती है। संयुक्त परिवार में रहते हुए उसे परिवार के अन्य औरतों के साथ मिलकर घर का सब काम करना और खाना पकाना पड़ता था। अब अलग रहते हुए खाना पकाने का कभी इच्छा हुआ तो हुआ, अन्यथा मोबाईल से आर्डर कर खाना बाहर से ही मंगा लिया जाता है। यह आनलाइन खरीदारी का चस्का उसे खुब लग गया है और वह इसमें अपना शान सभझ रही है।
बिनोद के पड़ोसी का परिवार एक संयुक्त परिवार है और उनके घर में छठ पूजा हो रहा है। सबिता छठ पूजा देखने जाने के लिए मेकअप वगैरह करके तैयार होने में लगी है। इधर रतन अपने मकान के छत पर खड़ा होकर पड़ोसी के छत पर चल रहे छठ पूजा की तैयारियों को देख रहा है और छठ गीत सुन रहा है।
छठ पूजा में दो विधान होता है, एक अर्घ्य और दुसरा कोसी। अर्घ्य भगवान सूर्य देव को दिया जाता है और कोसी छठी माई के लिए होता है। इस पूजा में कोई स्थापित मंत्र नहीं है, बल्कि छठी माई का गीत ही छठ का मंत्र है। छठी माई के गीत में औरतें अपने परिवार के सभी जीवित औरत मर्द का नाम लेकर उनके कुशल के लिए छठी माई से मिन्नत करतीं हैं। अपने बच्चों के लिए गीत में छठी माई से आशीर्वाद मांगती हैं।
रतन छत पर खड़े खड़े बड़े ध्यान से छठ गीत सुन रहा है। वह देखता है कि उस परिवार की छठ ब्रत करने वाली औरतें अपने परिवार के जिंदा दादा दादी, माता पिता, चाचा चाची, भाई बहन आदि का नाम लेकर उनके कुशलता के लिए छठ गीत गा रही हैं। चूंकि वह अपने माता पिता के अलावा और किसी का नाम नहीं जानता है, अतः गूगल सर्च पर अपने दादा दादी, चाचा चाची का नाम सर्च करने लगता है। पर गूगल सर्च यह बताने में असमर्थ है। थक हार कर वह अपनी माँ से जानकारी लेना चाहता है। इस पर उसकी माँ द्रवित हो जाती है और उसे अपने अतीत के बारे में बताती है।
जब बिनोद और सबिता की शादी हुई थी तब बिनोद का परिवार भी एक संयुक्त परिवार ही था। परिवार में बिनोद के दादा दो भाई, उनके पिता और उनके दो चाचा और उनकी पत्नियां सभी जीवित थे। खुद बिनोद भी तीन भाई था और उसके चेहरे भाईयों सहित बहुत ही बड़ा परिवार था। परिवार में खुब अमन चैन था। परिवार के मुखिया बड़े दादा जी थे। उनके निर्देशानुसार ही परिवार चलता था। परिवार में दादी, माँ, चाची सभी छठ ब्रत करती थी। उन दिनों उनके परिवार में खुब धुमधाम से छठ पूजा होता था।
मेरी शादी के कुछ दिन तक तो सब ठीक ठाक रहा, पर अब मुझे इस मेले जैसे परिवार में घुटन होने लगा। उस समय तक तुम्हारा जन्म हो चुका था। बात बात पर झगड़ा होने लगा और मेरी कोई निजी स्वतंत्रता नहीं रही। मैंने तुम्हारे पिता बिनोद के साथ अलग रहने का निश्चय कर लिया। तुम्हारे पिता ने भी अपना ट्रांसफर दूर यहाँ करवा लिया। देखते देखते ही परिवार बिखर गया।
आज इतने सालों तक किसी ने किसी का सुध नहीं लिया है। मुझे अब खुद भी नहीं मालूम है कि उस परिवार में कौन कहाँ है और कौन जिंदा है। आज तुमने गूगल सर्च पर अपने अपने दादा दादी, चाचा चाची आदि का नाम जानना चाहा। इस बात ने मेरी आत्मा को झकझोर दिया है। यह सब बातें कोई गूगल सर्च नहीं बता सकता है हम सब जैसे साधारण लोगों के लिए। इसके लिए परिवार से जुड़ना पड़ता है। इस बार तुम्हारे पिता बिनोद के आने पर मैं अपनी गलती को स्वीकार करते हुए उनसे क्षमा मांगूगी और निवेदन करूंगी कि अपने बच्चे के भविष्य और संस्कार के लिए हमलोग अपने गाँव अपने परिवार के पास चलें।
परिवार से कटकर एकल परिवार बनाने के पश्चिमी सभ्यता में हमलोग अपना संस्कार खो रहे हैं। हमारे बच्चे संयुक्त परिवार की मर्यादा और उसके फायदे को नहीं समझ पा रहे हैं। आधुनिक शिक्षा उन्हें अर्थ कमाने की शिक्षा दे रही है, परंतु हमारा भारतीय संस्कार मर रहा है। हमारे बच्चे रात दिन मोबाईल पर नये नये एप ढूंढने में और गूगल सर्च में लगे हुए हैं, जबकि हमारा स्थापित भारतीय पारिवारिक एप्लिकेशन समाज से और परिवार से गायब हो रहा है। हर परिवार एक कलह का अड्डा बन गया है। कोई काम नहीं करना चाहता है और विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए आनलाइन खरीदारी में लगा हुआ है। अब तो स्थिति यहाँ तक पहुँच गयी है कि पति पत्नी भी कुछ दिन साथ रह कर विदेशियों की तरह तलाक लेकर अलग हो जा रहे हैं।
आज भी कुछ जगह छठ गीत छठ घाट पर बैठकर ब्रती औरतें समूह में गा रही हैं। घर घर में छठ पूजा के लिए ठेकुआ मिठ्ठी के चूल्हे पर लकड़ी जला कर बनाया जा रहा है। विधि विधान से अब तक छठ पूजा किया जा रहा है।अगर मोबाईल का आनलाइन खरीदारी का सिलसिला इस तरह चलता रहा तो हो सकता है कि हमारा संस्कार पूर्ण रूप से मर जाये और छठ पूजा के लिए भी , आज कल के बच्चों जैसा गूगल सर्च पर परिवार के लोगों की खोज के जैसा ही, ठेकुआ पकवान को भी आनलाइन खरीदारी शूरू हो जाये।
बिडंबना यह है कि पश्चिमी सभ्यता अपने बाजार को बढ़ावा देने के लिए यह सब किये जा रही है और हम भारतीय लोग ऐसे हैं कि हम सब इस जाल में फंसते चले जा रहे हैं। वो अपना बाजार बढ़ा रहे हैं, और हम भारतीय अपना संस्कार खो रहे हैं।
तो आइये, इस छठ पूजा के अवसर पर हम सब यह तय करें कि हम भारतीय एक बार पुनः अपनी सभ्यता और संस्कार को बनाये रखने के लिए संयुक्त परिवार को बढ़ावा देने का प्रयत्न करेंगे और विदेशी कंपनियों को आर्थिक फायदा पहुंचाने से रोकने के लिए आनलाइन खरीदारी पर रोक लगायेंगे। जय छठी मइया। जय सूर्य देव। 🙏🙏
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