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दिवाली: खुशियों का संदेश

दिवाली: खुशियों का संदेश

सत्येन्द्र कुमार पाठक
दिवाली आने वाली थी। घर में चारों ओर उत्साह का माहौल था। डुग्गु (8 वर्ष) और पुच्चु (3 वर्ष) दोनों भाई घर की साफ-सफाई में अपनी मम्मी-पापा की मदद कर रहे थे। डुग्गु ने बड़े ध्यान से सारे पुराने खिलौने एक टोकरी में जमा किए, वहीं पुच्चु बस इधर-उधर भागकर मजे ले रहा था। "भैया, ये सारे खिलौने कहाँ जा रहे हैं?" पुच्चु ने उत्सुकता से पूछा। डुग्गु ने मुस्कुराकर कहा, "ये सारे खिलौने हम उन बच्चों को देंगे जिनके पास दिवाली पर नए खिलौने खरीदने के पैसे नहीं होते। दिवाली खुशियों का संदेश लाती है न, तो हम ये खुशियाँ बाँटेंगे।" शाम को दोनों भाई पापा के साथ पास की झुग्गी-झोपड़ी में गए। डुग्गु ने बड़े प्यार से अपने पुराने, लेकिन साफ-सुथरे खिलौने और कुछ नए बिस्कुट के पैकेट वहाँ के बच्चों को दिए। पुच्चु भी अपनी छोटी सी गेंद एक बच्चे को देकर ताली बजाने लगा।।बच्चों के चेहरों पर आई मुस्कान देखकर डुग्गु और पुच्चु के दिल भी जगमगा उठे। घर लौटते समय, डुग्गु ने पापा से कहा, "पापा, सच में! किसी को खुशी देने से अपनी खुशी और बढ़ जाती है।" अगले दिन, उनके घर की रंगोली और दीयों की रोशनी में एक और चमक थी – वह थी, दूसरों को खुशी देने की संतुष्टि की चमक। दोनों भाई समझ गए थे कि दिवाली सिर्फ घर को सजाने का नहीं, बल्कि दिलों को भी रोशन करने का त्योहार है।

सच्ची शिक्षा का महत्व: ज्ञान और चरित्र का समन्वय
शिक्षा का वास्तविक अर्थ केवल किताबी ज्ञान प्राप्त करना या अच्छे अंक लाना नहीं है। यह उससे कहीं अधिक गहरा और व्यापक है। सच्ची शिक्षा वह है जो व्यक्ति के भीतर ज्ञान, कौशल और नैतिक मूल्यों का समन्वय स्थापित करती है, उसे एक जिम्मेदार नागरिक और एक बेहतर इंसान बनाती है। आजकल की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में हम अक्सर शिक्षा को केवल रोजी-रोटी कमाने का साधन मान बैठते हैं। हम भूल जाते हैं कि डिग्री या नौकरी पाना एक पड़ाव हो सकता है, लेकिन जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं। अगर हमारी शिक्षा हमें धैर्य, करुणा, ईमानदारी और विनम्रता नहीं सिखाती, तो वह अधूरी है। महात्मा गांधी ने कहा था, "शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा के सर्वांगीण और सर्वोत्तम विकास से है।" इसका मतलब है कि शिक्षा को हमारे दिमाग के साथ-साथ हमारे दिल और हाथों को भी विकसित करना चाहिए। हमें केवल 'क्या सोचना है' यह सिखाने के बजाय 'कैसे सोचना है' यह सिखाना चाहिए।
सच्ची शिक्षा हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देती है। यह हमें सिखाती है कि असफलता भी सीखने का एक हिस्सा है और हार मान लेना किसी समस्या का हल नहीं है। एक शिक्षित व्यक्ति वह नहीं है जो हर सवाल का जवाब जानता हो, बल्कि वह है जो हर समस्या का सामना रचनात्मक ढंग से कर सकता हो।निष्कर्ष: हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में चरित्र निर्माण और नैतिक मूल्यों को सर्वोच्च स्थान देना होगा। केवल तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर पाएंगे जहाँ ज्ञान का प्रकाश अहंकार को नहीं, बल्कि मानवता और सहयोग को बढ़ावा दे। शिक्षा एक मशाल है, जो केवल हमारे जीवन को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को रोशन करती है।

सच्ची रोशनी (लघुकथा)
शहर की सबसे महंगी पाठशाला में पढ़ने वाला आर्यन हमेशा अव्वल आता था। उसके पास हर विषय की सबसे नई किताबें थीं, और उसके अंक पूरे स्कूल में सबसे ज्यादा थे। वह मानता था कि शिक्षा का मतलब है ढेर सारे अंक और अच्छी नौकरी। एक दिन दिवाली की छुट्टियों में, आर्यन अपने दादाजी के गाँव गया। वहाँ, वह एक गरीब लेकिन हंसमुख लड़के, रवि से मिला। रवि सरकारी स्कूल में पढ़ता था और उसके पास पुरानी, फटी किताबें थीं।
आर्यन ने घमंड से पूछा, "तुम इतनी पुरानी किताबें क्यों पढ़ते हो? अच्छी किताबें खरीदो, तभी अच्छे नंबर आएंगे।"
रवि मुस्कुराया। उसने आर्यन को पास के बगीचे में ले जाकर दिखाया कि कैसे वह पक्षियों के लिए पानी रखता है, कैसे गाय को चारा देता है, और कैसे अपने बूढ़े पड़ोसी को रोज बाजार से सामान लाकर देता है। "मेरे दादाजी कहते हैं," रवि ने कहा, "कि ज्ञान सिर्फ दिमाग में नहीं, दिल में भी होना चाहिए। अगर हमारी पढ़ाई हमें दया करना नहीं सिखाती, तो वह बेकार है।" शाम को, जब आर्यन ने रवि को अपनी पुरानी दीवाली की कहानी की किताब एक छोटे, गरीब बच्चे को देते देखा, तो उसकी आँखें खुल गईं। रवि के चेहरे पर जो शांति और खुशी थी, वह आर्यन के कभी न पूरे होने वाले अंकों की दौड़ में नहीं थी। आर्यन को समझ आया कि उसके दादाजी ने सही कहा था: सच्ची शिक्षा वह है जो दूसरों के जीवन में भी दीये जलाए। उस दिन से, आर्यन ने केवल दिमाग से नहीं, बल्कि दिल से भी पढ़ना शुरू कर दिया।

आलसी गिलहरी और जादुई बीज
एक घने जंगल में, टिक-टिक नाम की एक छोटी गिलहरी रहती थी। टिक-टिक बहुत प्यारी थी, लेकिन उसमें एक बुरी आदत थी—वह बहुत आलसी थी। उसे लगता था कि मेहनत करना बेकार है। एक दिन, जंगल का बुद्धिमान उल्लू बाबा, टिक-टिक के पास आया और उसे एक खास बीज दिया।उल्लू बाबा ने कहा, "टिक-टिक, यह एक जादुई बीज है। इसे जहाँ भी तुम बोओगी, वहाँ तुम्हें वह मिलेगा जिसकी तुम्हें सबसे ज़्यादा ज़रूरत होगी। लेकिन याद रखना, बीज बोने के बाद इसे रोज़ पानी देना होगा और धूप से बचाना होगा, तभी जादू काम करेगा।"
टिक-टिक ने बीज ले लिया। वह सोचने लगी, "मुझे तो सबसे ज़्यादा ढेर सारे मीठे अखरोट चाहिए, ताकि मुझे रोज़ खाना न ढूँढ़ना पड़े!" अगले दिन, टिक-टिक ने जल्दी से बीज को एक कोने में गाड़ दिया। वह पूरे दिन इंतज़ार करती रही, लेकिन कुछ नहीं हुआ। शाम को, वह थककर सो गई। दूसरे दिन, उसे याद आया कि उल्लू बाबा ने कहा था—"रोज़ पानी देना।""अरे! इतनी मेहनत कौन करे!" टिक-टिक ने मुँह बनाया, लेकिन अखरोट के लालच में वह थोड़ा सा पानी डालकर फिर खेलने चली गई। तीसरे दिन, जब वह फिर से बीज के पास गई, तो उसने देखा कि बीज की मिट्टी सूख चुकी थी। बीज से एक छोटा सा अंकुर बाहर आने की कोशिश कर रहा था, लेकिन पानी न मिलने के कारण वह मुरझा गया था। टिक-टिक उदास हो गई और उल्लू बाबा के पास रोने लगी, "बाबा! आपका बीज तो खराब निकला! मुझे अखरोट नहीं मिले।" उल्लू बाबा मुस्कुराए और बोले, "बेटी, बीज खराब नहीं था। असल में, मेहनत ही असली जादू है। तुम जिस चीज की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, वह थी 'परिश्रम' और 'धैर्य'। जादुई बीज ने तुम्हें यही दिखाने की कोशिश की कि बिना प्रयास के कोई फल नहीं मिलता।" टिक-टिक को अपनी गलती समझ आ गई। उसने उस बीज को फिर से सींचा, पर इस बार पूरी लगन से, रोज़ समय पर। कुछ ही दिनों में, वह बीज एक मज़बूत पेड़ बन गया, जिस पर मीठे अखरोट लटक रहे थे। सीख: सफलता केवल इच्छा करने से नहीं मिलती, बल्कि निरंतर प्रयास और कड़ी मेहनत से मिलती है। आलस्य सबसे बड़ा दुश्मन है।




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