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कविताओं के दीप जलाकर, दीपावली मनायेंगे।

कविताओं के दीप जलाकर, दीपावली मनायेंगे।

मन के अंधकार से लड़कर, ज्ञान-रश्मि बिखरायेंगे।।
कालचक्र दुख का, सुख का अनवरत घूमता रहता है।
कर स्वीकार सत्य जीवन का, गीत खुशी के गायेंगे।।
दीपावली मनायेंगे, दीपावली मनायेंगे।
जीवन के आयाम विविध हैं, लक्ष्य-पंथ हैं बहुतेरे।
चक्रव्यूह की भूलभुलैया में चुनौतियों के डेरे।
ज्ञात तथा अज्ञात शत्रुओं के षड्यंत्रों से टकराकर।
अभिमन्यु की तरह वीरगति पा इतिहास बनायेंगे।।
दीपावली मनायेंगे, दीपावली मनायेंगे।
कभी-कभी धारण करना होता है, हमें अटल धीरज।।
धरती साथ नहीं देती है, साथ नहीं देता सूरज।।
होती हैं विपरीत परिस्थितियाँ, प्रकाश छिन जाता है।
संकट की उन घड़ियों में भी, कर्म न हम बिसरायेंगे।।
दीपावली मनायेंगे, दीपावली मनायेंगे।
चंद्र अमावस का बन, समय-प्रतीक्षा में लग जायेंगे।
ले विवेक से काम, आत्म चिंतन की अलख जगायेंगे।।
देख हमें दुर्दिन में भी संघर्ष तथा उद्यम करता।
दीप जलाकर के जगवाले भी उत्साह बढ़ायेंगे।।
दीपावली मनायेंगे, दीपावली मनायेंगे।
दीपावली मनायेंगे, दीपावली मनायेंगे।
दीपावली मनायेंगे। दीपावली मनायेंगे।।
डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी
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